संस्मरण

अजब-गजब संस्मरण – धर्म संकट

घटना लगभग तीन दशक से भी पहले की है और सौ फीसदी सच है। बाँसवाड़ा में उन दिनों साहित्यिक आयोजनों और काव्य गोष्ठियों की जबर्दस्त बहार थी और कवियों की कई-कई प्रजातियाँ काव्य फसलों के साथ मैदान में हुआ करती थीं।

            इसी दौरान् एक अति उत्साही कवि महाशय, माही परियोजना में कार्यरत श्री बालगोपाल प्रेमी ने माही कॉलोनी में अपने सरकारी आवास की छत पर काव्य गोष्ठी रखी। इसमें नवोदितों से लेकर प्रतिष्ठित कवियों की गरिमामय उपस्थित थी।

            अनुज एवं अग्रज तथा स्थापित साहित्यकारों ने मुझे भी कविता पाठ करने के लिए उकसाया लेकिन मैं भी अपनी आदतन जिद और दृढ़ इच्छाशक्ति का इस्तेमाल करते हुए नहीं बोलने के लिए अड़ा रहा। मेरी कविताओं को लिखने में रुचि जरूर रही है लेकिन गोष्ठियों या कवि सम्मेलनों में बोलने की आदत कभी नहीं रही। परम उदार, सहनशील और सहिष्णु श्रोता की तरह सभी कवियों की कविताएं अन्त तक पूरी तन्मयता से सुनता जरूर हूँ। आधी रात आ पहुँची। काव्य पाठ का दौर लगातार जारी था।

            इस काव्य गोष्ठी का संचालन जाने-माने कवि एवं रसायनज्ञ स्व. प्रो. महेशचन्द्र पुरोहित कर रहे थे। इसमें किसी सहभागी कवि ने संचालक को स्लिप भेजी कि दीपक आचार्य को काव्य पाठ के लिए बुलाओ। वह कविता पाठ नहीं करेगा तो मैं छत से कूद कर आत्महत्या कर लूंगा।

            इस पर प्रो. पुरोहित ने मुझे अपने पास बुलाया और कान में यह बात कहते हुए कविता पाठ करने को कहा। मैंने अपनी आदत के मुताबिक विनम्रतापूर्वक साफ मना कर दिया और अपनी ओर से एक स्लिप भेजी कि यदि मुझे काव्य पाठ करने को बाध्य किया गया तो मैं छत से कूद कर आत्महत्या कर लूंगा।

            काव्य गोष्ठी का आधा दौर पूरा हो चुकने के बाद काव्य गोष्ठी के संचालक प्रो. महेश पुरोहित ने माईक पर इन दोनों स्लिपों के बारे में बताया और मजाकिया लहजे में कहा कि दोनों अपनी-अपनी स्लिपें वापस ले लें अन्यथा दोनों स्लिपों के साथ मुझे छत से कूद कर आत्महत्या करनी पड़ेगी।

            यह सुनते ही सारे प्रतिभागी कविगण एवं श्रोता हँस-हँस कर लोट-पोट हो गए। लेकिन मुझे इस रहस्य की तलाश आज तक बनी हुई है कि आखिर मुझसे कविता बुलवाने की स्लिप संचालक को किस ने दी। यह प्रश्न अब तक अनुत्तरित है।

*डॉ. दीपक आचार्य

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