कविता

संवेदन हीन समाज

कल तक सारा गुलशन अपना था
अपनापन का सुमन  खिला     था
आज वो बातें हो गई एक   कहानी
गाँव समाज दूर किया है    अज्ञानी

साफ सुथरा था भाईचारा का चेहरा
हर घर के बुजुर्ग का था कड़ा पहरा
भाई बन्धु का था जन जन से रिश्ता
आज का हालात देख दिल  टिसता

बह गये सब रिश्ते बन     तिनका
बालू की भीत बन गये तन मन का
मानव ही मानव का आता था काम
आज दानव बन करता है काम तमाम

होली दीवाली में बँटती थी प्रेम मिठाई
सब कुछ अब दीखता है जगत पराई
मार काट की चल रही है अब गोली
मीठा पन का भूल गया सब   बोली

बेटी बहन भी नहीं है सुरक्षित
समाज लड़ रहा है बन असुरक्षित
भीगता था कभी रंग से अंगिया
खून की होली चल रही है अनगिनियाँ

खून खराबा का प्रचलन है जगत में
ठग अपराधी दीखता है बगुला भगत में
कैसा बन गया अब जग का    पैमाना
हवस का बना गया जगत दीवाना

कोई किसी का नहीं है अब अपना
भाईचारा बन गया जग में   सपना
मतलब का रिश्ता है सब तन मन में
रावण कंस दीखता है अब कण कण में

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088