कविता

कविता

नारी की दास्ताँ सुन ऐ जिंदगी।
हाले दिल  बयाँ  कर ले ऐ जिंदगी।
भरी महफिल सजायें बयाँ कर गये।
ये दिल की दास्ताँ तबाह कर गये।।
जो चहकती थी अपने नूर लेकर।
दस्तूरे जख्म ए बयाँ जान लेकर।
कभी गुजरते थे राहों से तेरी
राहें महसूस कर जिन्दगी मेरी।
— सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ

स्नातकोत्तर (हिन्दी)