कविता

घायल परिंदे

मत उड़ इतना मासूम परिंदे
सब जगह रह देखें हैं दरिंदे
माना आसमां बड़ा बड़ा हैं
लेकिन वहां भी छैक बड़ा हैं
नहीं वहां हैं तेवारी कोई सुरक्षा
पग पग पर हैं कड़ी परीक्षा
पहचान नहीं पाओगे तुम जो
काट काट के वे खायेंगे तुम्हें
एक दो नहीं  वे पैंतीस टुकड़े
कर डालेंगे क्या तुम ये सह पाओगी
माना तुम्हे आजाद हैं होना
जिसे तुम समझो हो बंधन
हैं नहीं ये बंधन तेरी सुरक्षा
जिसे छोड़ आजाद न होगी
अपना कवच तू खुद तोड़ेगी
सोचो समझो बचाओ शील
जो हैं तुम्हारे जीवन की रीत
मत सोचो तुम्हे नहीं आजादी
रखते रत्नों को सब लॉकर में
अमूल्य हो तुम सब के लिए
तभी तो संभाले सब से ज्यादा
बस करो अब उड़ना रानी
मतलबी हैं ये दुनियां फानी
— जयश्री बिरमी

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।