हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – दुम हिलाइए, पुरस्कार पाइए

लंबे समय से कागज काला करता आ रहा हूं।लेकिन एक भी वैसा पुरस्कार,जिसमें सम्मानजनक राशि,प्रशस्ति पत्र व आकर्षक मोमेंटो शामिल हो, ऐसा अवसरआज तक नहीं मिला कंबख्त।छोटे-मोटे पुरस्कार तो अक्सर स्थानीय स्तर पर मिल ही जाते हैं जिससे क्षेत्र में जहां लंबे समय से सांप की तरह कुंडली मारकर बैठे आए हो वहां इस तरह के पुरस्कार से अपना रुतबा बरकरार रहता है।लोगबाग जानते पहचानते हैं,स्थानीय समाचार पत्र वाले समय-समय पर अपने पेपर में प्रमुखता से स्थान देते रहते हैं।अपने शहर में बीच-बीच में नाम का डंका बजता रहे इसके लिए सभीअखबार वाले मेरी तरफ से बधाई के पात्र हैं।
लेकिन वहीं जब हाई लेवल के पुरस्कार की बात होती है तब वहां पहुंचने के लिए हमारी इतनी पहुंच नहीं होती,इसलिए हम स्थानीय तक ही में लड़खड़ा कर रह जाते हैं।चाहे वह कोई भी क्षेत्र हो,खेल हो,फिल्म हो,सामाजिक क्षेत्र हो, हर जगह बोलबाला उसी का है जो दुम हिलाने की कला में माहिर हो।यह जगजाहिर है कि दुम हिलाने वाले हिला-हिला कर अपना डेग बढ़ाते-बढ़ाते पराकाष्ठा तक पहुंच जाते हैं।
आज का वर्तमान दौर दुम हिलाने का दौर है।इस क्षेत्र में जो मंजे हुए कलाकार हैं उनकी आभा आम लोगों की अपेक्षा अधिक प्रकाशित हुआ है।इस समय पूछ उसी की हो रही है।बंदा गलत कर रहा है फिर भी दुम हिलाई मीडिया वाले उसे सही करार देने हेतु दुम हिला-हिला कर रसदार मलाई चाप रहे हैं।जो दुम नहीं हिलाएगा वह कुछ नहीं पाएगा, खाली हाथआया है खाली हाथ जाएगा।
हमारे पड़ोस के राम एकबाल जी बड़े सरल स्वभाव के कट्टर, जुझारू प्रवृत्ति के स्वामी हैं।अपने काम से मतलब रखते हैं और बिना लाग लपेट के जो देखा वही बिना नमक मिर्च लगाए ज्यों का त्यों समाज में उगल देते हैं।इसलिए हर जगह उनके स्वभाव को लेकर लोग उन पर टूट पड़ते हैं।कोई-कोई कहता, यह किसी का सुनता नहीं है।न जाने किस मिट्टी का बना है मरदूद।तनिक भी डर नहीं,सच्चाई के प्रति बिल्कुल कठोर,सजग निर्भीक। इसलिए ‘दुम हिलाओ समाज’ में वे सबकीआंखों में टूटे शीशे की करीच की तरह चुभते रहते हैं।
वर्तमान दौर को देखा जाए तो देश में एक अलग हवा चल रही है।दुम हिलाने की कला में जो भी इस क्षेत्र का माहिर खिलाड़ी है वह जबरदस्त परफॉर्मेंस कर रहा है।फिल्म का क्षेत्र हो,खेल का क्षेत्र हो या राजनीति,मीडिया,प्रिंटमीडिया तथा और अनेकों संस्थान हैं, जहां दुम हिलाओ संस्कृति बढ़ चढ़कर बोल रही है।
कोरोना काल में फिल्मी कलाकारों ने आहत पीड़ित लोगों को हवाई जहाज से ट्रेन,बस से अपने पैसे से भर-भर कर उन्हें गंतव्य तक पहुंचाया।पुरस्कार के सही हकदार वही है।और जब पुरस्कार की बारीआई तो पुरस्कार उसी के हाथों में थमाई गई जिसने दुम हिलाई।लोग दबी जुबान से कहने लगे यह कैसी अंधी सरकार है भाई।
साहित्यकार भी कम कहां रहने वाले पुरस्कार पाने की होड़ में दुम हिलाने की कला में निपुण होने के लिए जी तोड़ प्रैक्टिस कर रहे हैं।कवि,लेखक,गीतकार,निबंधकार,पटकथा लेखक सब के सब जिस रास्ते से गुजर रहे हैं उसी रास्ते पर आंख मूंदे चल रहे हैं।जो दौर कह रहा है उसी में ढ़ल रहे हैं।कारण हां में हां मिलाइए,दुम हिलाइए,कुछ पत्रम-पुष्पम खिलाइए और बढ़िया नामी-गिरामी पुरस्कार पाइए।इसलिए जो इस कला में परिपूर्ण है वह तबाड़तोड़ दुम हिला रहे हैं और स्थानीय,राज्य स्तरीय को कौन कहे बल्कि डायरेक्ट नेशनल पुरस्कार चाप रहे हैं,पा रहे हैं।

— राजेन्द्र कुमार सिंह

राजेंद्र कुमार सिंह

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