कविता

उफ ! ये जालिम सर्दी

उफ I ये जालिम सर्दी आई
ठंडक ने की मुश्किल  को बढ़ाई
रात पछुवा हवा बहुत रूलाता
जालिम हड्डी तक को ठिठुराता

उफ ! ये जालिम सर्दी आई
पहाड़ी हवा मैदान तक ले आई
पानी भी वर्फ सा नखरा दिखलाता
गर्म पानी  हम सब को   फूसलाता

उफ ! ये जालिम सर्दी आई
जन जन के कानों में    समाई
रात रजाई तन मन को  सहलाता
ठंडक से राहत   फरमाता

उफ ! ये जालिम सर्दी आई
दीन दुखियों को कष्ट पहुँचाई
जिनके पास नहीं है कोई चादर
रात कटता दुःख का छाया बादर

खेत खलिहान में गंगू चाचा
पछुवा पवन से जूझता अन्नदाता
बेशरमी हवा जोर बतियाता
फिर भी इरादा ना तोड़ पाता

सूरज धरती से दूरी बनाया
अपनी तपिश को कम दिखाया
छत की मुड़ेर पर किरणे जब आती
आनन्द में बैठे सब    साथी

जंगल में सियार जब जब रोता
ठंडक को तन मन से कोसता
काश ! ये ठंडक धरा पे ना आती
सदाबहार मौसम सब को भाती

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088