कहानी

मास्टर जी

अरविन्द दास हाईस्कूल शिक्षक हैं। जिनकी पोस्ंिटग एक छोटा-सा शहर में हुई है। वहाँ के लोगों को अपना परिचय देते हैं। फिर सब अरविन्द दास को मास्टरजी-मास्टरजी कहकर पुकारने लगते हैं। इस हाईस्कूल में पूर्व से केवल दो ही शिक्षक हैं। एक हेडमास्टर, जो सामाजिक विज्ञान पढ़ाते और दूसरा हिन्दी। बच्चों के भविष्य का निर्माण करने वाले नये शिक्षक के आगमन से आदमी बहुत ज्यादा खुश हुए। शंकर नामक एक आदमी ने मास्टरजी को योगदान कराने हाईस्कूल ले गया। फिर मास्टर जी को स्कूल से आधे किलोमीटर दूर 10/10 का एक कमरा किराया पर उपलब्ध करा दिया।
मास्टरजी 10/10 के कमरा में रहने लगे। जिसमें एक बेड, दरवाजा के अंदर तरफ एक हेंगर, किचन का सामान, बेड में दो-चार किताबें और बेड के नीचे एक बक्सा है। यह मास्टर जी के कमरा का दृश्य है। मास्टर जी महीना-भर के बाद बीबी आशा को लेकर आ जाते हैं। बीबी कमरा का दृश्य देखकर मुँह पिचका लेती है। फिर भौं चढ़ाकर बोली- ‘‘ये कैसा कमरा लिया है। ना किचन, ना बेड रूम और ना बाथरूम ही कमन है।’’
मास्टर जी सरल और सहज भाषा में बोलते हैं- ‘‘ओ मेरी जानू! तुम बहुत दुखी हो रही है। दुखी होने की आवश्यकता नहीं है। हम कुछ दिनों में बेड रूम, किचन, हॉल और बाथरूम भी कमन वाला ढँूढ़ लेंगे।’’
मैडम शांत होकर बोली- ‘‘लेकिन बाथरूम भी तो कॉफी दूर है। बाल्टी में पानी लेकर जाना होगा।’’
‘‘बेबी, मैंने कहा न, कुछ ही दिनों की बात है। फिर………….।’’
मैडम किसी तरह एडजस्ट करके रहने लगी थी। पर एक दिन आंधी-पानी आने के कारण लाइट नहीं आती है। रात को मैडम सौ गालियाँ देकर मोमबत्ती जला कर रोटी बना ली। रात-भर गर्मी से मास्टर और मैडम सो नहीं सके। सुबह भी लाइट नहीं आने पर मास्टरजी को कुआँ से पानी रस्सी से निकालना पड़ा। बर्तन धोने, खाना बनाने से लेकर मैडम का स्नान करने तक का पानी निकालते थक गये। खुद स्नान करने के वक्त हाथ में रिस-रिस कर खून निकलने लगा था।
मास्टर जी नास्ते में रोटी की जगह भात खाते हैं। आज मैडम ने मास्टर जी के आगे केवल गरमा-गरम माड़ भात रख दी और बेड में लेट जाती है। मास्टरजी जब भात उठाकर खाने के वास्ते हाथ डाले कि गर्म से हाथ जल गया। जलन से मास्टरजी उछल-कूद करने लगे। क्रोध से मास्टरजी थाली को आंगन में फेंक कर बिन खाये स्कूल चले जाते हैं।
मास्टरजी आज सुबह से परेशान थे। फिर बीबी ने माड़ भात देकर माइंड ऑफ कर दी। ऑफिस में जाकर अपना उपस्थिति दर्ज करते हैं। तभी हेडमास्टर बोलते है- ‘‘मास्टरजी आप आज कल बराबर लेट से आते हैं। आज आपने बहुत लेट कर दिया। घड़ी देख लीजिए। विद्यार्थी क्लास में टीचर के नहीं आने पर हल्ला करते हैं।’’
मास्टरजी हेडमास्टर का जवाब दिये बिना क्लास चले जाते हैं। मास्टरजी गणित के शिक्षक हैं। मास्टरजी को आते देख, सारे विद्यार्थी शांत हो जाते हैं। मास्टरजी क्लास रूम के अंदर प्रवेश करके सीधे श्यामपट पर लिखते हैं- (ं़इद्ध2 त्र घ्
एक-एक करके सारे विद्यार्थी को खड़ा करके पूछते हैं। जिसमें लगभग आधे से अधिक विद्यार्थियों ने (ं़इद्ध2 त्र ं2 ़2ंइ ़ इ2 कहा। लेकिन सारे विद्यार्थी के दोनों हाथ में तीन-तीन डंडा लगाते हैं। किसी विद्यार्थी में ये मजाल नहीं था कि मास्टरजी को कुछ कह सके। कई दफ़ा विद्यार्थी को मास्टरजी का दंश झेलना पड़ा है। इसलिए कभी-कभी सही उत्तर जानते हुए भी चुपचाप रहते हैं।
साल-भर गुजर जाने पर भी मैडम को दूसरा कमरा नसीब नहीं हुआ। 10/10 कमरा में अपनी जिंदगी मास्टरजी के साथ लगड़-झगड़ कर गुजारने पर विवश हैं। एक दिन भोर के समय मैडम बाथरूम जाने के वास्ते निकली। हाथ में बाल्टी उठाकर पानी भरने कुआँ चली जाती हैं। कुआँ के सामने जाकर बाल्टी से रस्सी निकालने के लिए हाथ डालने वाली थी कि बाल्टी में सांप देखकर चिल्ला उठी-‘‘सांप! सांप!…….! ’’
मास्टरजी गहरी नींद में सो रहे हैं। मैडम के चिल्लाने पर भी जब मास्टरजी कमरा से नहीं निकलते हैं। तब मैडम क्रोधित होकर कुआँ के सामने दूसरे के बाल्टी में भरा हुआ पानी को लेकर आ जाती हैं। और मास्टरजी के शरीर में उडेल देती है। मास्टरजी कौन है बे? कौन है बे? कहकर चिल्ला उठते हैं। मैडम के हाथ में बाल्टी देखकर मास्टरजी मैडम के गाल में दो थप्पड़ जोड़ देते हैं। मैडम क्रोध से ओर चिल्लाने लगी- ‘‘तुम एक दिन मुझे मरा के ही रहेगा। तभी इस कमरा से जायेगा। तुम कसम खा लिया है। कंजूस! तुमको मैं कब से कह रही हूँ कि दूसरा कमरा ढूँढ़ लीजिए। लेकिन तुमको कोई कमरा ही नहीं मिलता है। बाकी सब को कमरा मिलता है। कंजूस!’’
‘‘लेकिन हुआ क्या? और तुम सुबह-सुबह मेरे शरीर में पानी क्यों डाली? मेरी नींद खराब कर दी।’’
‘‘हुआ क्या? कब से मैं चिल्ला रही थी। तुमको कुछ पता है। असुर जैसा सोते हो। आज मैं मर ही जाती। भगवान न बचा लेते तो!’’
‘‘आखिर हुआ क्या है?’’
‘‘मैं बाल्टी लेकर कुआँ गयी……………………..।’’
‘‘अच्छा! ये बात है। अब समझा।’’
‘‘आज ही दूसरा कमरा ढूँढ़ लो। मुझे इस कमरा में अब एक पल भी नहीं रहना है। वरना….।’’
‘‘तुम जितनी आसानी से कह देती हो। उतना आसान नहीं है, कमरा ढूँढ़ना। ये एक छोटा-सा शहर है। यहाँ बड़े शहरों की तरह दो-तीन बेड रूम, हॉल, किचन और बाथरूम वाला कमरा नहीं मिलता है। और उसमें पैसा भी तो ज्यादा लगता है। अभी ही यदि सारा पैसा खर्च कर लेंगे, तो बाल-बच्चा का पढ़ाई-लिखाई और शादी-ब्याह कहाँ से करेंगे? नौकरी से रिटायर होने के बाद एक रुपया कहीं से आने वाला नहीं है। सरकार ने पुरानी पेंशन योजना बंद कर दी है। कोई पेंशन भी मिलने वाला नहीं है। इसीलिए मैं पैसा बचाने की कोशिश कर रहा हूँ। और तुम है कि कुछ समझती ही नहीं हो। केवल बड़बडा़ती रहती हो।’’
‘‘मैं आपका भाषण सुनना नहीं चाहती हूँ। चुपचाप जो कह रही हूँ। वह कीजिए, वरना मैं यहाँ खाना बनाने वाली नहीं हूँ।’’
मास्टरजी फुसफुसाने लगे- ‘‘मैं भी दूसरा कमरा ढूँढ़ने वाला नहीं हूँ। मुँह में कह देने से ही हो गया। कितना खर्च है। ये औरत शुरू से मुझे तंग की है। कभी चैन से रहने नहीं दी। ये औरत है या डायन। कुछ समझ में नहीं आ रहा है। यहाँ रहने वाले किसी परिवार को दिक्कत नहीं है। केवल इन्हीं को दिक्कत है। रंडी!’’
‘‘मैं सब सुन रही हूँ। मैं रंडी हूँ। और तू क्या है? रंडा! साला कंजूस! माखनजूस! कमरा नहीं मिलने का बहाना करता है। मुझे तुम्हारी नीयत पता है।’’
‘‘बाप के वहाँ पुआल के घर में रहती थी। खेत में काम करने जाती थी। अभी बड़ी-बड़ी बात कर रही हो।’’
‘‘ये मास्टरजी! मैं, अपने बाप के घर में खेत काम करने जाती थी, कोई चोरी करने नहीं। मेरे बाप ने तुझे दहेज देकर शादी दी है। मैं भाग कर नहीं आई हूँ। बीच में मेरा बाप का नाम मत लेना, वरना! ’’
‘‘वरना, तुम क्या कर लेगी?’’
‘‘तुमको जलाकर राख कर दूँगी। मैं लक्ष्मी भी हूँ और काली भी।’’
‘‘देख आशा! तू बात को ज्यादा ही बढ़ा रही हो। आज स्कूल में जरूरी काम है। चुपचाप खाना बना, जो हुआ सो भूल जा। मैं आज स्कूल से आते वक्त कमरे की तलाश भी करते आऊँगा। तेरी कसम।’’
‘‘तू मेरी झूठी कसम मत खा। मैं आज तुम्हारे कितनो भी कसम खाने पर खाना बनाने वाली नहीं हूँ। मुझे क्रोध मत दिला।’’
‘‘ओ बेबी! ज्यादा गुस्सा नहीं करना चाहिए। गुस्सा सेहत के लिए हानि कारक है। सब गुस्सा थूँक दे। और चल खाना बना। मैं आज पानी ला देता हूँ।’’ कहता मास्टरजी पानी लाने चले जाते हैं। किंतु मैडम हाँ से हूँ तक नहीं बोली। मास्टरजी पानी लाकर स्नान करने चले जाते हैं। जब स्नान करके आ जाते हैं। तब तक मैडम बेड में पड़ी हुई है। ना बर्तन धोई है और न ही खाना बनाई है। बाल्टी में पानी जस-का-तस रखा हुआ है। मास्टरजी क्रोध से पानी को कमरा के अंदर उडेल देते हैं और सारे बर्तन को आंगन में फेंक कर स्कूल चले जाते हैं।
स्कूल में विद्यार्थी प्रार्थना के वास्ते लाइन में लग रहे हैं। कुछ विद्यार्थी यूनिफॉर्म में नहीं हैं। जिन्हें अलग लाइन में खड़ा होने का निर्देश देकर मास्टरजी ऑफिस चले जाते हैं। मास्टरजी दो मिनट में ऑफिस से एक डंडा लेकर आ जाते हैं। सबको अपना दोनों हाथ आगे करके खड़ा होने को कहते हैं। फिर दोनों हाथ में दो-दो डंडा लगाते हुए मशीन की तरह आगे बढ़ रहे थे। वहीं लाइन में खड़ा एक लड़का ने हाथ नीचे करते हुए कहा- ‘‘सर, कल बारिश हुई थी। स्कूल से जाते वक्त भींग गया था। इसीलिए यूनिफॉर्म नहीं पहना हूँ।’’
‘‘अच्छा! बहाना तो बहुत अच्छा बना लिया है। तुम्हारा नाम क्या?’’
‘‘सर, मेरा नाम जयवंत कुमार है।’’
‘‘तो जयवंत, तुम अपना दूसरा सेट यूनिफॉर्म क्यों नहीं पहना। हीरो बनता है।’’
‘‘सर मेरे पास एक ही सेट यूनिफॉर्म है।’’
‘‘अपने बाप से क्यों नहीं खरीदवाते हो।’’
‘‘सर, मेरा बाप बहुत गरीब है। किसी तरह एक सेट यूनिफॉर्म खरीद दिया है। वह भी मजदूरी करके।’’
‘‘साला! बहाना बनाता है। मेरा बाप गरीब है। फिर ये नया कपड़ा कहाँ से आया।’’
‘‘सर, ये कपड़ा मेरे मामा ने अपनी शादी में खरीद दिया था।’’
‘‘फिर बहाना।’’
‘‘सर, मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ। मेरी माँ की कसम।’’
‘‘माँ की झूठी कसम खाता है। अभी सारा सच उगलेगा।’’ कहता डंडा से इतना मारने लगे कि सारे विद्यार्थी डर से भाग गये। जयवंत दर्द से चिल्ला-चिल्लाकर उछलने लगा, जयवंत जितना उछल-कूद करता, मास्टरजी ओर जोर-जोर से मारते। उछल-कूद करते-करते एक बार सिर में लग जाता है। जयवंत धड़ाम से जमीन में पेड़ की भांति गिर जाता है। मास्टरजी गिरने के बाद भी दो-चार लात लगाते हुए कहते हैं- ‘‘अब मरने का बहाना करता है। साला! मास्टरजी को पहचानता नहीं है।’’
मास्टरजी के चले जाने के बाद विद्यार्थी पानी लेकर आते है। लेकिन तब-तक जयवंत का शरीर निश्वास हो चुका था।

— डॉ. मृत्युंजय कोईरी

डॉ. मृत्युंजय कोईरी

युवा कहानीकार द्वारा, कृष्णा यादव करम टोली (अहीर टोली) पो0 - मोराबादी थाना - लालापूर राँची, झारखंड-834008 चलभाष - 07903208238 07870757972 मेल- mritunjay03021992@gmail.com