ग़ज़ल”इक शामियाना चाहिए”
सिर छिपाने के लिए, इक शामियाना चाहिए
प्यार पलता हो जहाँ, वो आशियाना चाहिए
राजशाही महल हो, या झोंपड़ी हो घास की
सुख मिले सबको जहाँ, वो घर बनाना चाहिए
दाँव भी हैं-पेंच भी हैं, प्यार के इस खेल में
इस पतंग को, सावधानी से उड़ाना चाहिए
मुश्किलों से है भरी, ये ज़िन्दग़ानी की डगर
आखिरी लम्हात तक, रिश्ता निभाना चाहिए
जोड़ना मुश्किल बहुत है, तोड़ना आसान है
सभ्यता का आचरण, सबको दिखाना चाहिए
चार दिन की चाँदनी है, फिर अँधेरी रात है
घर सभी का रौशनी से, जगमगाना चाहिए
आइना दिल का मिला है, देख गर्दन को झुका
“रूप” के अभिमान को, अपने हटाना चाहिए
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)