कविता

दिल दिमाग

जज़्बात कुछ ऐसे भी होते हैं
जिन्हें लिखते लिखते
हाथ रुक जाते हैं
कलम थम जाती है
दिल कहे तू लिख
दिमाग करे इनकार
फिर जंग शुरू होती है
दिलो दिमाग के बीच
दिल लेता निर्णय
भावना से
दिमाग करता है तर्क
दिल चाहता है बोलना
दिमाग है उसको रोकता
वो जानता है
भावना में लिए निर्णय
जल्दबाजी के होते हैं
भावना से अभिभूत होते हैं
गलत भी हो सकते
जिसका पछतावा
जिंदगी भर बना रह जाता है
इसीलिए वो रोकता है
दिल के आवेग को
थामता है जज़्बात को
और हाथ रुक जाते हैं
कलम थम जाती है

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020