कुण्डली/छंद

ठंड पर चौकड़िया छंद

(१)
ठंडी की तो रुत है आई,माँगें सभी रजाई।
मौसम ने मारा है सबको,व्याकुल दद्दा-माई।।
हवा चल रही बेहद शीतल,देते सभी दुहाई।
कैसी ये है आई विपदा,आँख करती रुलाई।।
(२)
ठंडी ने है ताव दिखाया,हर जन है घबराया।
गरम चाय की माँग बढ़ गई,ऊनी सबको भाया।।
कम्बल की तो पूछ बढ़ गई,स्वेटर है इतराया।
मौसम ने ख़ुद कम्बल ओढ़ा,ठंडी ने भरमाया।।
(३)
देर सुबह तक सोना भाया,ठंडी की है माया।
बरफ बन रही देखो भाई,सारी उघड़ी काया।।
कैसा मौसम मौत सरीखा,कौन इसे है लाया।
आया है तो कहर करेगा,आया पर क्यों आया।।
(४)
ठंडी का तो रोज़ सितम है,दुख का यह मौसम है।
चैन नहीं,आराम नहीं है,हर पल निकला दम है।।
नगर-गाँव में रातें सूनी,इसका सबको ग़म है।
ठंडी तो है घातक लगती,बनी हुई वो बम है।।
(५)
धूप तापते  मर्द–जनाना,ठंडी दूर भगाना ।
बदन शिथिल हो गया बंधुवर,थोड़ी गर्मी पाना।।
काया में कुछ दम आ जाये,मन को तो हरसाना।।
ठंडी ने तो किया पराजित,साहस पास बुलाना।।
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com