कविता

रात मेरी तन्हाई है

चाँदनी है आशमां पे खिली खिली
रात ने ली गजब   अंगड़ाई      है
उनकी दर पे लगी है         भीड़
पर रात मेरी     तन्हाई।       है

गंगा यमुना सदियों से है बहती
प्यसा पहाड़ की अब  तराई है
उनकी दर पे    लगी है     भीड़
पर रात मेरी    तन्हाई       है

चमन की कलियॉ है बहकी बहकी
भौंरा बेशर्म बना        हरजाई है
उनकी दर पे लगी   है।     भीड़
पर रात मेरी       तन्हाई।      है

दुनियाँ में है बड़ी चहल पहल
पर मेरी दुनियाँ बनी पराई है
उनकी दर पे लगी    है   भीड़
पर रात।   मेरी।   तन्हाई।   है

आवारा बादल है नभ पे घिरी
रूत बरसात की     आई   है
उनकी दर  पे     लगी  है भीड़
पर रात  मेरी    तन्हाई।   है

नदियाँ उतर रही है पहाड़ी से
अल्हड़ उनकी   परछाई  है
उनकी दर पे।   लगी है  भीड़
पर रात।   मेरी   तन्हाई   है

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088