कविता

तुम्हारे लिए।

प्यार दिल में है पाला, तुम्हारे लिए
मैंने खुद को संभाला, तुम्हारे लिए।
प्रेम की वो गली, तुम जहां थी मिली
उस जगह डेरा डाला, तुम्हारे लिए।
प्यार धरती पे आया, तुम्हारे लिए
मुझको रब ने बनाया, तुम्हारे लिए
एक तुम्हारे सिवा, कोई भाया नहीं
खुद को तन्हा बनाया, तुम्हारे लिए।
सारे जग से लड़ा हूं, तुम्हारे लिए
खुद से खुद को पढ़ा हूं, तुम्हारे लिए।
ऐ मेरे हमसफर, मुड़ के डालो नजर,
कब से तन्हा खड़ा हूं, तुम्हारे लिए।
गीत ग़ज़लों को गाया, तुम्हारे लिए
खुद को शायर बनाया, तुम्हारे लिए।
तुम मेरी शायरी, मेरी कविता हो तुम
तुमको ही गुनगुनाया, तुम्हारे लिए।
— प्रदीप शर्मा 

प्रदीप शर्मा

आगरा, उत्तर प्रदेश