ग़ज़ल
चला रवि रथ बढ़ा यह ही नया अवसर मुबारक हो
मुबारक हो मुबारक हो, नया वत्सर मुबारक हो
चहचहाते हुये पंछी भले लगते सभी को ही
हवा चलती हिले पत्ते यही सर -सर मुबारक हो
भ्रमर की गूँज गुँजाती बाग को देखो लुभाती है
सुनो तो आज फूलों की बिछी चादर मुबारक हो
तितलियाँ प्यार से मँडरा रहीं देखो यहाँ उड़ती
सुहाना – सा दिखे सारा यही मंजर मुबारक हो
बढ़े देखो सभी अब तो मिले मंज़िल नयी सबको
हमारी भी सुनो अब तो नव यह सफ़र मुबारक हो
दिशाएँ सब चमकती हैं सुनहरी आज किरणों से
सबेरा ये नया सा है , *खिला दिनकर मुबारक हो
रहें सच्चे सदा इक – दूसरे के हित सुनो हम तो
सभी रिश्ते निभाने को हुये तत्पर मुबारक हो
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’