लघुकथा

माँ की कृपा

अंकित बड़ी मुश्किल से पाँच छ: वर्ष का होगा । दो बहनों का भाई। अभी बचपन में ही था । पढाई से बेफ्रिक बस दिन भर मौज- मस्ती में मस्त। दादा-दादी का राज दुलारा और बहनों का भी बेहद प्यारा । बुआ कविता तो उसे अपनी जान से भी अधिक प्यार करती थी । निस्संदेह अंकित को अपने घर से ही बहुत खूब प्यार मिलता था पर पड़ोसियों से भी उसका अत्यधिक लगाव था । इसी लाड-प्यार में कब वह किशोरावस्था में पहुँच गया समय का कुछ पता ही नहीं चला । अब खेल-कूद के अलावा उसने पढ़ाई में भी नाम कमाया । विद्यालय के सभी अध्यापक उसे प्यार करते । विद्यालय के प्रत्येक समारोह में वह सबसे आगे होता । विज्ञान प्रदर्शनी में राज्य में प्रथम स्थान प्राप्त कर 5000 रूपये की राशि ईनाम में हासिल की । इस खुशी के मौके पर अंकित के घर वालों ने स्कूल समेत सारे मोहल्ले में लड्डू बांटे। अंकित की बुआ शुरू से ही उसे लड्डू गोपाल कहती थी । अत: इस खुशी में उसने अपनी बुआ को भी आमंत्रित किया जो कि अब विवाहित थी ।
कविता को आए अभी दो-तीन दिन ही हुए थे । उसने अंकित में अजीब सा परिवर्तन देखा। हर समय खेल-कूद में मस्त व प्रसन्नचित्त रहने वाला अंकित अब बेहद खामोश रहने लगा । जितनी बात पूछो बस उतना ही उत्तर देता । खाना भी कम खाता । उसके मम्मी-पापा व दादा-दादी ने उससे काफी पूछताछ की पर जवाब शून्य रहा। चूँकि बुआ-भतीजे का अथाह प्यार था तो बुआ से अंकित की यह दशा देखी न गई।  बुआ ने उसे गले लगाया और अपनी शपथ दिलाई कि वह सच सच बतलाएं कि क्या बात है । अंकित फूट-फूटकर रोकर अपनी बुआ को अपनी व्यथा बताने लगा ।
   अंकित ने सिसकते हुए कहा कि मेरे सहपाठी जिनमें कमल प्राचार्य का बेटा भी शामिल है मुझ से ईर्ष्या करने लगे हैं और तो और प्राचार्य जी बात-बात पर मुझे डाँटते रहते हैं । सुबह की प्रार्थना में सभी बच्चों के सामने मुझे जलील करते रहते हैं ।
” बस इतनी सी बात। जा बुद्धू, मैं आज ही तेरे प्राचार्य से मिलती हूँ । ” कविता जो स्वयं लेक्चरर थी ने कहा ।
  “नहीं बुआ वे बहाना बनाकर मुझे विद्यालय से बाहर निकाल देगें ।” अंकित ने कहा
  तूं डर न ।  मैं करती हैं इस समस्या का समाधान। कविता ने प्राचार्य जी से मिलकर इस मसले को हल करवा दिया । अब अंकित पुन: खुश रहने लगा । अब तो वह समूचे विद्यालय का चहेता बन गया ।
  बारहवीं की परीक्षा नजदीक आते अंकित तनाव में रहने के कारण गंभीर बीमार पड़ गया । उसे डबल निमोनिया हो गया । उसके बचने की उम्मीद क्षीण हो गई। घर वाले सभी चिन्तित। बुआ का हाल भी देखा नहीं जा रहा था । सभी परेशान हो गए तभी रात को सोते हुए बुआ को एक आकृति दिखी साक्षात् माँ भवानी सी । उसने कहा, ” बेटा परेशान न हो । इस घर के सबसे अंदर के कमरे में एक शीशी पड़ी है । उसे उठा कर इस बच्चे को पिला दो । माँ कृपा से शीशी वाली दवा पीकर मृतप्राय अंकित पूर्ण स्वस्थ हो गया । वह पढ़ाई में तो कुशाग्र था । उसने पढ़कर फिर हर साल की तरह अपने विद्यालय तो क्या समूचे राज्य में मैरिट स्थान प्राप्त किया । कविता बुआ ने अंकित को बधाई देते हुए कहा ,” यह माँ भवानी की तुम पर कृपा हुई है । हम सब नतमस्तक होने माँ के दरबार में जाएंगे ” ।
— वीरेन्द्र शर्मा 

वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन

धर्मकोट जिला (मोगा) पंजाब मो. 94172 80333