लघुकथा

लघुकथा – टकटकी

राज के रोजाना दफ्तर जाते वक्त उसकी माँ जानकी बस उससे तीन प्रश्न पूछती थी। कभी कभी राज अपनी माँ को झिड़क देता था। “क्या माँ हर दिन वही बातें पूछती हो क्या मैं बच्चा हूँ जो एक ही बात का उत्तर देता रहूँगा। ”
“बेटा मुझे तेरी झिड़की सुनने की आदत बन गई है जब तक तेरी डांट न सुनूँ चैन ही नहीं मिलता।” बेटा बड़बड़ाते हुये बाहर निकल जाता है, लेकिन अपनी पत्नी और बेटे से प्यार से बातें करता हुआ जब बाहर दरवाजे पे आता है तो बेटे और पत्नी से हाथ हिला कर बाय और टाटा कहता है । पर उस माँ पर उसकी नजर नहीं पड़ती है जो खिड़की से अपने बेटे को रोजाना सिर्फ इसलिए निहारती है कि एक दिन बेटा इस खिड़की की तरफ जरूर झाँक कर देखेगा। वो दिन जरूर आयेगा । हर दिन जानकी यही सोचकर शाम तक बेटे के लिए इन्तजार करती है ।
बेटा खाना खा लिया? तबियत ठीक है? गाड़ी अच्छे से चलाना।
क्या माँ फिर वही बात तंग आ गया हूँ । रोज बाहर जाते समय टोक लगा देती हो । अब मत पूछना। माँ ने सर हिला कर चुपचाप अपने कमरे में चली गई ।
जब राज आज शाम को घर आया तो देखा माँ चुपचाप चादर ओड़ कर लेटी है । राज वापस अपने कमरे में पत्नी और बेटे के पास बैठ गया।कमरे में से हँसी की तेज तेज आवाज आ रही थी। उसी समय जानकी अपने बेटे राज की बचपन की तस्वीर को सीने से लगा कर आँसूओं से भीग चुकी थी । एसा कोई सा भी दिन नहीं गया जब जानकी पुरानी यादों को याद कर नहीं रोई हो। उसे अपने बेटे और बहू के दो मीठे बोल चाहिये थे । बस इसी उम्मीद में वो दिन रात अपना जीवन गुजार रही थी। बस खिड़की से झाँकना और बेटे से तीन सवाल पूछना यही उसकी जीने के लिए एक अमृत बना हुआ था। लेकिन बेटे को इसका एहसास भी न था। वो तो बस अपनी दुनिया में खोया हुआ था जिसने उसे ये दुनिया दी उसे वो पूरी तरह से भूल चुका था। माँ ने अब पूछना छोड़ दिया था। राज चाहे चिल्लाता रहता था पर मानो जैसे उसकी आदत भी माँ जैसी बन चुकी थी । उस दिन जब माँ ने टोकना बन्द किया तो उसे अजीब लगा।

एक दिन राज की पत्नी बेटे को लेकर मायके गयी हुई थी तो राज दफ्तर जाने के लिए बाहर आया तो अचानक उसकी नजर खिड़की पर पड़ी देखा माँ टकटकी लगा कर उसे देख रही थी। राज को आज अपनी माँ को इस तरह देख कर एहसास हुआ कि जिस माँ ने मुझे इस लायक बनाया और मैं उसी माँ को जब मेरे प्यार और अपनेपन की जरुरत है तो मैं उन्हे अकेलापन दे रहा हूँ । मुझे आज मेरी पत्नी और बेटे बिना घर खाने को दौड़ रहा है । तो मेरी माँ मेरे पास रहते हुए भी मैने दो मीठे बोल माँ से नहीं बोले। मेरी माँ मुझे कब से इस खिड़की से झाँकती रही पर मैं एक बार भी उनकी तरफ प्यार से देखता भी नहीं था। राज दौड़ कर अपनी माँ के पास जाता है और अपनी माँ के सीने से लग जाता है । और उसे एहसास हो गया था कि माता पिता जब सामने होते हैं । उन्हें दो मीठे बोल भी बोल नहीं पाते हैं ।और जब सामने नहीं हो तो उनकी कही गई बातें याद आती है । राज को अपने आगे वाले समय की परछाई भी नजर आ चुकी थी।

वीणा चौबे

हरदा जिला हरदा म.प्र.