कविता

ज़िन्दगी

जीवन में दिक्कतें, रोज ही आती
हमारे हौसलों, को आजमाती
पल भर को भले, हम हार जाएं
हमेशा के लिए हमें, हरा न पाती ।

अन्ततः ज़िन्दगी, ही मुस्कुराती ।।

तूफान, बाढ़ हो, या कोई आंधी
थोड़े समय ही, टिक पाती है
इन्सान के अदम्य, साहस के आगे
अंत में नतमस्तक, हो जाती ।

अन्ततः ज़िन्दगी, ही मुस्कुराती ।।

कितने विनाशों, से गुजरी दुनिया
कितने भूकंपों का, हुआ सामना
लाखों करोड़ों ने, प्राण गंवाए,
सोच कर आंखें, नम हो जाती ।

अन्ततः ज़िन्दगी, ही मुस्कुराती।।

कोविड में हमने, क्या क्या न देखा
बदल डाली जीवन, की रूपरेखा
अपनी परछाई से,भागते फिरते थे
अब देखो कोविड ही,पीटता छाती

अन्ततः ज़िन्दगी, ही मुस्कुराती।।

दो-दो विश्वयुद्ध के, हम हैं साक्षी
ऐटम बमों ने तो, नींव ही हिला दी
फिर से चल पड़ी,चाहतों की डोली
काहे की चिन्ता,क्यों अश्रु बरसाती

अन्ततः ज़िन्दगी, ही मुस्कुराती।।

टर्की सीरिया, फिर उबर जाएंगे
भयंकर त्रासदी से, मुक्ति पाएंगे
खेत-खलिहान, फिर लहलहाएं गे
इतिहास की बातें,तो यही बतातीं

अन्ततः ज़िन्दगी, ही मुस्कुराती।।

समय का अपना ही, गुणा भाग है
सारे जख्मों को, भर देता है
धीमे-धीमे फिर,सब चहकने लगते
ज़िन्दगी फिर से, पटरी पर आती।

अन्ततः ज़िन्दगी, ही मुस्कुराती।।
अन्ततः ज़िन्दगी, ही मुस्कुराती।।

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई