कविता

नीड़

सूरज ढल गया हो गई  अब शाम
नीड़ बना आशियाना करना है आराम
ख्वाब हमारे हो रहें है सब पूरे
कल होगी जो काम हैं आज अधूरे

जूगनूँ को पकड़ कर कल शाम लाऊँगा
नीड़ को रौशन करने का उपाय लगाऊँगा
आशियाना में होंगें सपरिजन परवाज
नीड़ में होगा अपना समृद्धि  का सरताज

आयेगा सावन का जब जब भी मौसम
झूला झूलेगें पवन के झौके से हम तुम
झूलेगें हमारे संग सब बाल गोपाल
कितना आनन्ददायक होगा वो काल

हवा का झौंका जब जब पर्वत से आयेगा
प्यार मोहब्बत से हमें वो सहलायेगा
रात घनेरी हो या भादो की बरसात
मस्ती में जीयेगें पत्नी रानी के संग साथ

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088