कविता

कृषक दुर्दशा

दीन – हीन किसान
कर्ज का मारा
स्वयं रहे भूखा
पर संसार की भूख मिटाता ।
साधन विहीन
रहता चिंतित हमेशा
कहते लोग सेठ उसे
करते अपमानित…
फटे- पुराने चिथडों में
करता रहता हरदम काम
कर्म संत से पूजित उसके
पर चूस रहा उसको संसार ।
कुछ धन्ना सेठ बने नाम के किसान
दिखा रहे दौलत -शोहरत
सरकार देख उनकी खुशहाली
करती विज्ञापन बाजी !
पर सच में,
असली किसान
पीड़ा से तड़प रहे
और चूम रहे फांसी के फंदे ।
कृषक दुर्दशा
लिखी न जाये
कही न जाये
सुनाई न जाये
देखी न जाये….।
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111