कविता

सच्चा प्रेम

सच्चा प्रेम तुमसे मैं किया है
मर कर भी ना भूलेगें तुम्हें
लाख दीवार बन जाये जमाना
रूह में दफन कर लेगें संग तुम्हें

ना मैं तेरी सूरत का अवलोकन किया
ना तेरी रंग रूप पे फिदा हुए हैं   हम
तेरे तन मन की प्यार की खुशबू   से
महक रहा है मेरे प्रेम की  ये गुलशन

प्रेम किया है मैं तुम्हें सच्चे  तन मन से
मत ले मेरी इम्तहान मेरे हमदम
मर कर भी अमर रहेगा मेरी मुहब्बत
ना करना झ्स को तुम बर्बाद जानेमन

सात जन्मों का रिश्ता है तेरा मेरा अब
जनमों जनमों तक निभायेगें इसे
तेरे जुल्फों में सुख दुःख की दरिया में
बह जायेगें जीवन की हॅसीन सरगम

ये मेरी प्रेम कहानी है आज अनमोल
धन दौलत से ना इसे तुम कभी तौल
अलबेला हूँ मैं एक प्रेम पुजारी
कुछ तो अब जानेमन तुम बोल

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088