गीतिका/ग़ज़ल

मातृभाषा दिवस

माँ की भाषा मातृभाषा, लोरी से सुनना सीखा था,
नींद तुरन्त आ जाती, माँ की थपकी से सीखा था।
माँ कीं भाषा में ही सबको, अम्मा बाबा कहते थे,
उसी दौर पानी को मम, रोटी को हप्पा सीखा था।
माँ सिखलाती भगवान को जय जय, हाथ जोड़ना,
तुतलाती बोली में हमने, माँ की भाषा मे सीखा था।
बड़े हुए तो पढ़ लिख कर, बहुत ज्ञान हमने पाया,
नहीं भूले उस ज्ञान को, जो मातृभाषा में सीखा था।
चोट लगे तो आज भी हम, माँ को याद किया करते,
पल भर भी हम भूल सके ना, जिसमें जीना सीखा था।
— डॉ अ कीर्ति वर्द्धन