मुक्तक/दोहा

आप के धर्म युद्ध पर

जब गले की फाँस दिल तक आ गई,
“आप” के चेहरे पर सिकन छा गई।
घिर गये जयद्रथ कुरुक्षेत्र के मैदान में,
आरोप कृष्ण पर, बाल छल पर आ गई।
है अजब सी मानसिकता, धर्मयुद्ध में देखिए,
अधर्म के साथ बहुत से, हैं धर्माचार्य देखिए।
कोई निष्ठा से विवश, कुछ को सत्ता की चाह,
मुफ़्त लालच का असर, इन्द्रप्रस्थ डूबता देखिए।
धर्मयुद्ध में अनेक योद्धा, अधर्म करते खेत रहे,
धृतराष्ट्र सिंहासन पर, बन्द आँख सब देख रहे।
आतिशबाजी और पटाखे, गली चौराहों पर चलते,
आँखों देखा हाल संजय, अपने ढंग से बेच रहे।
— अ कीर्तिवर्द्धन