गीत/नवगीत

गीत

कहाँ कहा कब हमने यह कि, हम पर विपदा भारी है
कहाँ कहा कब हमने यह कि, जीवन की दुश्वारी है
कहाँ कहा कब हमने यह कि, सारी भूमि हमारी है
कहाँ कहा कब हमने यह कि, अब जीवन लाचारी है
युगों-युगों से मात-पिता ने इस धरती को सींचा है
सुंदरतम भारत माता का, चित्र अनूठा खींचा है
समय-समय पर सूर्यवंश ने, इस भू का उद्धार किया
चंद्र वंश ने गीता देकर, जीवन को आधार दिया
जियो और जीने दो, दर्शन महावीर ने बतलाया
हमने गौतम की वाणी को, दूर-दूर तक फैलाया
जगत ही परिवार हमारा, यही गीत हमने गाया
जो भी आया दूर देश से, हमने उसको अपनाया
हुए एक हम जब सारे तो, छोड़ फ़िरंगी भी भागे
लौह पुरुष ने भाग-दौड़कर, जब जोड़े सारे धागे
एक विधान-प्रधान हमारा, एक निशान ही प्यारा है
मगर समय के साथ दौड़ना, अब कर्तव्य हमारा है
अगर एक रहना है हमको, दूर भगाना दूरी है,
तो एक राष्ट्र के लिए एक कानून बहुत ज़रूरी है।

— शरद सुनेरी