गीतिका/ग़ज़ल

गज़ल

आयेगी कब खुशियाॅं वो सहर ढूंढ़ रहा हूॅं
साहिल पर ही न डूबा दे लहर ढूंढ़ रहा हूॅं
पीले साम्प्रदायिकता का ज़हर सारा ही वो
फिर इस ज़मीं पर मैं वही शंकर ढूंढ़ रहा हूॅं
खो गया है इस कदर अब वो मिलता नहीं यहाॅं
कल तक था नक़्शे पर वो शहर ढूंढ़ रहा हूॅं
हादसे दर हादसे होने लगे हैं इस कदर
उन्हीं हादसों में क़त्ल का ख़ज़र ढूंढ़ रहा हूॅं
ख़ूब मारे हाथ पैर फिर भी न हुआ है हासिल
लगते फल जिसमे मीठे वो शजर ढूंढ़ रहा हूॅं
मिटा दे पेट की भूख अब तो ‘रमेश’ की सारी
अनाज से भरा ऐसा कनस्तर ढूंढ़ रहा हूॅं
— रमेश मनोहरा

रमेश मनोहरा

शीतला माता गली, जावरा (म.प्र.) जिला रतलाम, पिन - 457226 मो 9479662215