लघुकथा

उम्मीद के सितारे

आज अंगेश का 25वां जन्मदिन था. इसी अवसर पर धूमधाम से उसकी शादी की तैयारियां हो गई थीं. वैसे तो अब गांव बहुत उन्नत हो गया था, पर प्राचीन सांस्कृतिक-सामाजिक परंपराओं को उसने आज भी बरकरार रखा था.
पूरी तरह से शाकाहारी भोजन व मिठाइयों का प्रबंध हो गया था. होली के मनभावन दिन चल रहे थे, इसलिए ठंडाई भी छन रही थी. बरातियों के लिए गेंदे के फूलों की सुरभित मालाएं तैयार थीं, खटियाओं पर मखमली चादर-तकिए सजे थे. अपनी जड़ों से जुड़े हुए रंगरंगीली रंगोली के साथ ठेठ भारतीय परिवेश का रंगीला माहौल था.
यह संयोग था कि होने वाली बन्नी का भी आज ही जन्मदिन था. उसकी चाहत कहिए या जिद्द, आज के मंगल दिवस पर ही वह ब्याह रचाना चाहती थी. बड़े-बुजुर्गों का कहना था कि फागुनी के इन दिनों में ब्याह जैसे मंगल कारज न हों तो अच्छा है, पर अंजुरी ये कब मानने वाली थी!
मानती तो वह 15 साल पहले अंगेश का इहलोक छोड़ जाना भी नहीं थी! जाने क्यों उसे लग रहा था कि मेरे बचपन का मीत अंगेश जिंदा है और आज ही के दिन वापिस भी आएगा. चकाचक सारे प्रबंध करते हुए भी बाकी सबका जहां मन उदास था, अंजुरी का मन प्रफुल्लित गुलाब की तरह महक रहा था.
सबके मन में मलाल होता भी कैसे नहीं! 10 साल के अंगेश को सांप ने काट लिया था, झाड़-फूंक के बाद बेटे को मरा समझ घरवालों ने खुद ही 15 साल पहले बेटे को मरा मान केले के तने में बांध नदी में बहाया था, वह भला लौट के कैसे आ सकता है!
पर क्या अद्भुत-अकल्पनीय करिश्मे नहीं होते! अचानक गांव में शोर मच गया! गेंदे के फूलों की मालाओं से लदा अंगेश महक रहा था, पूरा गांव खुशी से महक रहा था, बैंड-बाजे वालों सुर छेड़ने का अवसर मिल गया था, वारे हुए नोटों से उनकी जेबें भारी हो गई थीं. एक ट्रक ड्राइवर अंगेश को छोड़ने आया था.
“होश में आने पर मैंने खुद को सपेरों की एक बस्ती में पाया. अमन माली नाम के एक सपेरे ने मुझे नदी में से निकाल कर झाड़-फूंक के जरिए जिंदा किया. अमन माली के साथ मैं भी तमाशा दिखाने जाने लगा. फिर एक बड़े किसान के वहां मुझे नौकरी पर रखवा दिया. वहां से जो भी पगार मिलती थी वह अमन माली ले लेते थे, लेकिन मेरे पालन-पोषण में कोई कमी नहीं आने दी. धीरे-धीरे मेरी खोई हुई याददाश्त वापिस आ ने लगी, मेरे पालक पिता ने बड़े प्यार से एक ट्रक ड्राइवर के साथ मुझे यहां पहुंचवा दिया.” अंगेश ने अपनी हैरत-अंगेज़ गाथा सुनाई.
बेटे के जिंदा लौटने पर घरवालों की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े. धूमधाम के साथ विवाह संपन्न हुआ. अंजुरी की उम्मीद के सितारे बुलंद हो गए थे.
— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244