गीत/नवगीत

कभी मनुज न सह पायेगा

चाहे चेहरे लाख लगा लो, दोहरे मापदंड अपना लो,
लेकिन मन का दर्पण तुससे, कभी झूठ न कह पायेगा
बहुत दिनों तक भार हृदय का, कभी मनुज न सह पायेगा।

धूल झोंक कर भले जगत की, आँखों में हम रह सकते हैं,
भूल – भूलकर भूलभुलैया में हम, खुद की रह सकते हैं,
लेकिन मन का पंछी मन की, आघातें ना सह पायेगा
बहुत दिनों तक भार हृदय का, कभी मनुज न सह पायेगा। 1।

मन और मानस में जब – जब भी, अंतर्द्वंद्व ठन जाता है
फँस जाता है मनुज भँवर में, कुरुक्षेत्र तन बन जाता है
चक्रव्यूह- सा सजा हो जीवन, क्या अभिमन्यु सह पायेगा?
बहुत दिनों तक भार हृदय का, कभी मनुज न सह पायेगा। 2।

लड़ जाओगे जग से पर, खुद से लड़ना आसान नहीं है
करे पराजित खुद को खुद से, बना यहाँ सामान नहीं है
लपटें आत्मदाह की पल-पल, कोमल मन ना सह पायेगा
बहुत दिनों तक भार हृदय का, कभी मनुज न सह पायेगा। 3।

शरद सुनेरी