माँ
माँ
माँ की ममता ही यहाँ भगवान है
माँ की ममता पर खुदा कुर्बान है |
माँ तपन में छाँव पीपल की घनी
माँ उजाला ज़िंदगी का मान है |
माँ के चरणो में समायी श्रष्टि है
माँ कि ममता ने किया धनवान है
ऋण चुकाया जा नहीं सकता कभी –
शक्सियत ऐसी निराली शान है |
माँ की ममता आसमाँ सी छाँव है
जिसकी छाया चाहता भगवान है |
माँ के दामन में हज़ारों नेमते
माँ बिना दुनियाँ लगे वीरान है |
है पिता बल और सम्बल मानते
किन्तु माँ बालक की होती जान है |
नेह की जलधार अविरल बह रही
दु:ख सहती माँ सुखों की खान है |
माँ के चरणो में बसे तीरथ सभी
पर मनुज क्यों जान कर अंजान है |
है पिता बल और सम्बल मानते
किन्तु माँ बालक की होती जान है |
मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल’