गीतिका/ग़ज़ल

माँ

माँ

माँ की ममता ही यहाँ भगवान है
माँ की ममता पर खुदा कुर्बान है |

माँ तपन में छाँव पीपल की घनी
माँ उजाला ज़िंदगी का मान है |

माँ के चरणो में समायी श्रष्टि है
माँ कि ममता ने किया धनवान है

ऋण चुकाया जा नहीं सकता कभी –
शक्सियत ऐसी निराली शान है |

माँ की ममता आसमाँ सी छाँव है
जिसकी छाया चाहता भगवान है |

माँ के दामन में हज़ारों नेमते
माँ बिना दुनियाँ लगे वीरान है |

है पिता बल और सम्बल मानते
किन्तु माँ बालक की होती जान है |

नेह की जलधार अविरल बह रही
दु:ख सहती माँ सुखों की खान है |

माँ के चरणो में बसे तीरथ सभी
पर मनुज क्यों जान कर अंजान है |

है पिता बल और सम्बल मानते
किन्तु माँ बालक की होती जान है |
मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016