कविता

रिटायरमेन्ट

दफ्तर अब हमें नहीं है जाना
परदेश हो गया अब ये जमाना
फाईल से मिल गई छुटकारा
जीवन हो गया स्वतंत्र हमारा

भाड़े के घर से रिश्ता टुटा
घर मालिक से किच किच छूटा
खिचड़ी खुद से होता था पकाना
जब कि घर की खाने का था मैं दीवाना

जिन्दगी ने बना दिया था परदेशी
रिटायरमेन्ट ने बना दिया स्वदेशी
कितना सुन्दर है ये अफसाना
पत्नी के संग गायें बुढापे पे गाना

पोता पोती संग गुजरेगी अब  शाम
कहानी कहेगें राजा रानी की  आम
मिलेगी पुत्रबधू के हाथ की   रसोई
जिसके लिये तरसता था मै     भाई

जीवन कट गई बन के घुम्मकड़
बन गया था जीवन मेरा खक्कड़
घर की रोटी की अपना ही    मान
घर में जीना है पाकर स्वाभिमान

नहीं करनी है चाकरी अब किसी की
खेती है जीवन यापन सब की     ही
नीच है चाकरी माना मेरे          भाई
पराधीनता में सुख कहाँ जीवन में आई

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088