कविता

यमराज का श्रद्धांजलि समारोह

 

अभी बिस्तर से उतरकर खड़ा ही हुआ था

कि यमराज से मुलाकात हो गई,

मरता क्या न करता,आदर दिया

ससम्मान आसन ग्रहण कराया

गृहमंत्री को चाय नाश्ते का हुक्म फ़रमाया।

फिर यमराज से सभ्य मेजबान की तरह

हालचाल के साथ सुबह सुबह आने का कारण पूछा।

श्रीमती जी चाय नाश्ते की ट्रे रखकर

हम दोनों की आग्नेय नेत्रों से घूर कर चली गईं।

बिना संकोच अथवा औपचारिकता के

यमराज ने चाय का कप उठा लिया

यमराज का सहज भाव मेरे दिल को छू गया

चाय पीते हुए यमराज ने

मुझे अपनी दुविधा से अवगत कराया

अपने श्रद्धांजलि समारोह की चिंता जताया

मैंने समझाया तुम्हारीये चिंता व्यर्थ है

आज तो श्रद्धांजलि समारोह आम है

मगर इसके लिए पहले मरना जरुरी है।

आप तो अभी हट्टे कट्टे हैं

श्रद्धांजलि समारोह की चिंता में नाहक दुबले हो रहे हैं।

प्रभु!आप नहीं। समझ रहे हैं

मेरा श्रद्धांजलि समारोह होगा भी या नहीं

होगा भी तो कौन करेगा, और क्यों करेगा?

अपनी फील्ड में तो मैं ही अकेला हूं

फिर ये जहमत भला कौन उठाएगा?

अरे यार, तुम्हारी चिंता नाजायज है

तुम मरने के बाद देखने तो नहीं आओगे

फिर इतनी चिंता क्यों करते हो

जिसे करना होगा करेगा, नहीं करना होगा न करेगा।

बस प्रभु बस यही तो मेरी चिंता का कारण है

तभी तो आपके पास आया हूं

आप ठहरे नेक भावुक आदमी

सबका दुःख दूर करते हैं

मेरी नज़र में आप ही सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं

ये जिम्मेदारी आप ले लीजिए

मेरा भी श्रद्धांजलि समारोह होगा

ये आश्वासन दीजिए, मैं निश्चिंत हो जाऊंगा

वरना यहीं डेरा जमाकर बैठ जाऊंगा

फिर आप जानते हैं क्या होगा

दुनिया में हाहाकार मच जायेगा

आपके घर में डर से कोई परिंदा भी न आयेगा

आपका सारा प्रोग्राम व्यर्थ हो जायेगा।

अच्छा तो तुम मुझे धमका रहे हो

जानते हो कहां आ गए हो?

कहो तो अभी तुम्हारा श्रद्धांजलि समारोह करवा दूं

एक दो क्या दस बीस पटलों पर

तुम्हारे नाम का श्रद्धांजलि समारोह

बैठे बैठे आनलाइन संपन्न करा दूं,

उसका समाचार अमेरिका तक में छपवा दूं।

मेरी बात सुन यमराज खुशी से नाचने लगा

बस प्रभु आपने कह दिया, अब मुझे विश्वास हो गया

मेरी चिंता का समाधान हो गया

अब मैं सबको गर्व से बताऊंगा

मेरा भी श्रद्धांजलि समारोह होगा

टी. वी . चैनलों पर उसका प्रसारण होगा

अखबारों में समाचार छपेगा

सोशल मीडिया में भी इसकी गूंज होगी,

मेरे श्रद्धांजलि समारोह की भी खूब चर्चा होगी

जीते जी न सही मरने के बाद ही सही

मेरा भी नाम चमक उठेगा,

पाठ्यक्रमों में मेरे नाम का एक पाठ जुड़ जाएगा।

आपकी जय हो प्रभु आप महान हैं

मैं आपको साष्टांग प्रणाम करता हूं

अब इजाजत दीजिए, मैं विदा लेता हूं

अपना काम खुशी खुशी फिर से करता हूं।

यमराज एकदम बच्चों की तरह

ख़ुशी से उछलते कूदते विदा हो गए

सुबह सुबह मुझे नई उलझन दे गये,

एक और आयोजन का सिरदर्द

अनायास ही दे गए।

 

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921