राजनीति

बिखर गई पंचायतें, रूठ गए है पंच

आजकल हमें ऐसी ख़बरें सुनंने और पढ़ने को मिल रही है कि देश के अमुक गांव के सरपंच ने कर्ज के चलते आत्महत्या कर ली। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? भारत की पंचायती राज प्रणाली में गाँव या छोटे कस्बे के स्तर पर ग्राम पंचायत या ग्राम सभा होती है जो भारत के स्थानीय स्वशासन का प्रमुख अवयव है। सरपंच, ग्राम सभा का चुना हुआ सर्वोच्च प्रतिनिधि होता है। प्राचीन काल से ही भारतवर्ष के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन में पंचायत का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। सार्वजनिक जीवन का प्रत्येक पहलू इसी के द्वारा संचालित होता था। वर्तमान में ई-पंचायत के विरोध में हरियाणा प्रदेश भर में ग्राम पंचायतों में ग्राम सचिवों द्वारा धरने दिए जा रहे हैं और बीडीपीओ कार्यालय को ताले जड़े जा रहे हैं, सरकार ग्राम पंचायत में ई-प्रणाली शुरू करने जा रही है। हरियाणा के सरपंचों का कहना है कि ग्राम पंचायत में इस तरह की प्रणाली पर काम नहीं हो पाएगा। ऐसे में गांवों के विकास कार्य प्रभावित होंगे। विकास कार्य न होने पर ग्रामीण भी सड़कों पर उतर जाएंगे।

भारतीय संविधान में 73वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए स्थानीय लोगों की भागीदारी का प्रावधान किया गया है। 73वें और 74वें संविधान संशोधन अधिनियमों के तीन दशक से भी अधिक समय के बाद, राज्य सरकार, स्थानीय नौकरशाही के माध्यम से, पंचायतों पर काफी विवेकाधीन अधिकार और प्रभाव का प्रयोग करना जारी रखती हैं। भारत में, स्थानीय निर्वाचित अधिकारियों (जैसे कि तेलंगाना में ये सरपंच ) की शक्तियाँ राज्य सरकारों और स्थानीय नौकरशाहों द्वारा कई तरह से गंभीर रूप से सीमित रहती हैं, जिससे स्थानीय रूप से निर्वाचित अधिकारियों को सशक्त बनाने के लिए संवैधानिक संशोधनों की भावना कमजोर होती है।

ग्राम पंचायत रोजमर्रा की गतिविधियों के लिए राज्य और केंद्र से मिलने वाले अनुदान (विवेकाधीन और गैर-विवेकाधीन अनुदान) पर आर्थिक रूप से निर्भर रहती हैं। मोटे तौर पर, पंचायतों के पास धन के तीन मुख्य स्रोत -राजस्व के अपने स्वयं के स्रोत (स्थानीय कर, सामान्य संपत्ति संसाधनों से राजस्व, आदि), केंद्र और राज्य सरकारों से सहायता अनुदान, और विवेकाधीन या योजना-आधारित धन होते हैं । राजस्व के अपने स्वयं के स्रोत (कर और गैर-कर दोनों) कुल पंचायत निधियों के एक छोटे से अनुपात का गठन करते हैं। पंचायतों के लिए विवेकाधीन अनुदानों तक पहुंच राजनीतिक और नौकरशाही संबंधों पर निर्भर करती है।

स्वीकृत धनराशि को पंचायत खातों में स्थानांतरित करने में अत्यधिक देरी से स्थानीय विकास रुक जाता है। उन्हें आबंटित धन का उपयोग कैसे करना हैं, इस पर भी गंभीर प्रतिबंध हैं। राज्य सरकारें प्राय: पंचायत निधियों के माध्यम से विभिन्न व्ययों पर खर्च की सीमाएँ लगाती हैं। जैसे हाल ही में हरियाणा में सरकार ग्राम पंचायत में ई-प्रणाली शुरू करने जा रही है। ग्राम पंचायत में इस तरह की प्रणाली पर काम नहीं हो पाएगा। ऐसे में गांवों के विकास कार्य प्रभावित होंगे। विकास कार्य न होने पर ग्रामीण भी सड़कों पर उतर जाएंगे। पंचायत निधि खर्च करने के लिए दोहरे प्राधिकरण की व्यवस्था करती है। सरपंचों के साथ ही, भुगतान के लिए नौकरशाही की सहमति की आवश्यकता होती है। सरपंच और पंचायत सचिव को पंचायत निधि से भुगतान के लिए जारी किए गए चेक पर सह-हस्ताक्षर करना चाहिए ।

राज्य सरकार स्थानीय नौकरशाही के माध्यम से स्थानीय सरकारों को बाध्य करती हैं। उदाहरण के लिए, सार्वजनिक निर्माण परियोजनाओं के अनुमोदन के लिए अक्सर ग्रामीण विकास विभाग के स्थानीय अधिकारियों से तकनीकी स्वीकृति और प्रशासनिक अनुमोदन की आवश्यकता होती है, सरपंचों के लिए एक थकाऊ प्रक्रिया जिसके लिए सरकारी कार्यालयों में बार-बार जाने की आवश्यकता होती है। स्थानीय कर्मचारियों पर प्रशासनिक नियंत्रण रखने की सरपंचों की क्षमता सीमित है। कई राज्यों में, पंचायत को रिपोर्ट करने वाले स्थानीय पदाधिकारियों, जैसे ग्राम चौकीदार या सफाई कर्मचारी, की भर्ती जिला या ब्लॉक स्तर पर की जाती है। अक्सर सरपंच के पास इन स्थानीय स्तर के कर्मचारियों को बर्खास्त करने की शक्ति भी नहीं होती है।

अन्य स्तरों पर निर्वाचित अधिकारियों के विपरीत, सरपंचों को पद पर रहते हुए बर्खास्त किया जा सकता है। कई राज्यों में ग्राम पंचायत अधिनियमों ने जिला स्तर के नौकरशाहों, ज्यादातर जिला कलेक्टरों को आधिकारिक कदाचार के लिए सरपंचों के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार दिया है। पूरे देश भर में, नौकरशाहों द्वारा सरपंचों को पद से बर्खास्त करने का निर्णय लेने के नियमित उदाहरण देखने को मिलते हैं।  हाल के वर्षों में अधिक सरपंचों को पद से बर्खास्त किया गया है।

सरपंचों सार्थक विकेन्द्रीकरण के लिए प्रशासनिक या वित्तीय स्वायत्तता की आवश्यकता है। पंचायत मंत्रालय को यह सुनिश्चित करने के लिए वित्त आयोग के अनुदानों की रिलीज और व्यय की निगरानी करनी चाहिए कि उनकी रिहाई में कोई देरी न हो। पंचायतों को स्थानीय ऑडिट नियमित रूप से करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि वित्त आयोग के अनुदान में देरी न हो। पंचायत मंत्रालय को पंचायतों के सुचारू कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए सहायक और तकनीकी कर्मचारियों की भर्ती और नियुक्ति की दिशा में गंभीर प्रयास करने चाहिए। क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण के माध्यम से पंचायतों के सुदृढ़ीकरण को केंद्र और राज्य सरकार की ओर से और अधिक प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए । इससे वे बेहतर ग्राम पंचायत विकास योजनाएं तैयार करने में सक्षम होंगे, साथ ही नागरिकों की जरूरतों के प्रति अधिक उत्तरदायी बनेंगे।

राज्य सरकारों के लिए अपने संबंधित ग्राम पंचायत कानूनों के प्रावधानों की फिर से जांच करने और स्थानीय सरकारों को धन, कार्यों और पदाधिकारियों के अधिक से अधिक हस्तांतरण पर विचार करने के लिए एक जगाने वाली कॉल है।

भंग पड़ी पंचायतें
गाँव-गाँव अब रो रहा, गांधी का स्वराज।
भंग पड़ी पंचायतें, रुके हुए सब काज।।
कहाँ बचे भगवान से, पंचायत के पंच।
झूठा निर्णय दे रहे, ‘सौरभ’ अब सरपंच।।
पंचायत के आज कल, बदल गए है पक्ष।
दाँव पेंच में उलझते, पंच के संग अध्यक्ष।।
पंचायत विषधर करे, हुई बहस पुरजोर।
हम से विष में आदमी, क्यों आगे हर ओर।।
रही नहीं पंचायतें, रहे नहीं वो गाँव।
फँसकर कोर्ट कचहरियां, घिस-घिस जाते पाँव।।
न्याय रूप भगवान का, चलता इनसे राज।
पंचायत हो सच अगर, बनते सबके काज।।
पंच राम का रूप थे, राम राज चहुँ ओर।
कहाँ गया वो राज अब, कहाँ सुनहरी भोर।।
जनहित करें न काम जो, वो कैसे सरपंच।
चढ़ना उनका पाप है, पंचायत के मंच।।
बिखर गई पंचायतें, रूठ गए है पंच।
भटक राह से है गए, स्वशासन के मंच।।
(सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से। )
डॉ सत्यवान ‘सौरभ’

डॉ. सत्यवान सौरभ

✍ सत्यवान सौरभ, जन्म वर्ष- 1989 सम्प्रति: वेटरनरी इंस्पेक्टर, हरियाणा सरकार ईमेल: satywanverma333@gmail.com सम्पर्क: परी वाटिका, कौशल्या भवन , बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045 मोबाइल :9466526148,01255281381 *अंग्रेजी एवं हिंदी दोनों भाषाओँ में समान्तर लेखन....जन्म वर्ष- 1989 प्रकाशित पुस्तकें: यादें 2005 काव्य संग्रह ( मात्र 16 साल की उम्र में कक्षा 11th में पढ़ते हुए लिखा ), तितली है खामोश दोहा संग्रह प्रकाशनाधीन प्रकाशन- देश-विदेश की एक हज़ार से ज्यादा पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशन ! प्रसारण: आकाशवाणी हिसार, रोहतक एवं कुरुक्षेत्र से , दूरदर्शन हिसार, चंडीगढ़ एवं जनता टीवी हरियाणा से समय-समय पर संपादन: प्रयास पाक्षिक सम्मान/ अवार्ड: 1 सर्वश्रेष्ठ निबंध लेखन पुरस्कार हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी 2004 2 हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड काव्य प्रतियोगिता प्रोत्साहन पुरस्कार 2005 3 अखिल भारतीय प्रजापति सभा पुरस्कार नागौर राजस्थान 2006 4 प्रेरणा पुरस्कार हिसार हरियाणा 2006 5 साहित्य साधक इलाहाबाद उत्तर प्रदेश 2007 6 राष्ट्र भाषा रत्न कप्तानगंज उत्तरप्रदेश 2008 7 अखिल भारतीय साहित्य परिषद पुरस्कार भिवानी हरियाणा 2015 8 आईपीएस मनुमुक्त मानव पुरस्कार 2019 9 इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ रिसर्च एंड रिव्यु में शोध आलेख प्रकाशित, डॉ कुसुम जैन ने सौरभ के लिखे ग्राम्य संस्कृति के आलेखों को बनाया आधार 2020 10 पिछले 20 सालों से सामाजिक कार्यों और जागरूकता से जुडी कई संस्थाओं और संगठनों में अलग-अलग पदों पर सेवा रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, दिल्ली यूनिवर्सिटी, कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, (मो.) 9466526148 (वार्ता) (मो.) 7015375570 (वार्ता+वाट्स एप) 333,Pari Vatika, Kaushalya Bhawan, Barwa, Hisar-Bhiwani (Haryana)-127045 Contact- 9466526148, 01255281381 facebook - https://www.facebook.com/saty.verma333 twitter- https://twitter.com/SatyawanSaurabh