सामाजिक

खिड़की पर टंगी चद्दर दोहरा काम देती

ऊँची मंज़िलों की रोशनी उनमें रहने वालों को मुबारक, एक मंज़िला मकान मुझे हर चीज़ से ज़्यादा अज़िज है। मेरे किस काम की उन मखमली पर्दों की झिलमिलाहट! खिड़की पर टंगी चद्दर दोहरा काम जो देती है।
इस कथन को अपनाते जिएँ, मौज में कटेगी ज़िंदगी। कहने का मतलब इतना है कि, कुछ लोग अपने से दो पायदान उपर खड़े लोगों से जलते खुद को जो मिला है उसे चीज़ का आनंद नहीं ले पाते। जब-जब बड़ी गाडियों को देखते है तब एक रश्क के साथ आसमान की ओर देखते कहेंगे! “काश मेरी लकीरों में भी इतना वैभव लिखा होता”। ज़िंदगी से शिकायत नहीं, ज़िंदगी से प्रेम करो। हर पल को जश्न सा जिओ।
अपेक्षाओं का कोई छोर नहीं संतुष्टि ही ज़िंदगी को सहज बनाती है। अपने से भी दो पायदान नीचे खड़े लोगों को देखो जिनके पास खुद का घर नहीं, न दो वक्त भर पेट भोजन मिलता है अपनी ज़िंदगी पर गुमान हो जाएगा। सकारात्मक सोच रखिए जो उनकी लकीरों में नहीं वो आपको हासिल है।
ताड़ी के पेड़ों को देख तुलसी का नन्हा सा पौधा शर्माता नहीं, न जिराफ़ की ऊँचाई देख खरगोश खिसीयाना होता है! क्योंकि प्रकृति के हर सर्जन की अपनी-अपनी खासियत होती है, अपना रुतबा होता है। हर किसीके रास्ते, आसपास का वातावरण, काम और परिवार की हैसियत अलग-अलग होती है।
हर किसीको उपरवाले ने अलग-अलग उदेश्य देकर धरती पर भेजा है। अपने आप में हर कोई खास है। बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों में रहने वाले भी दाल, चावल, सब्ज़ी, रोटी ही खाते है। इसलिए जो हासिल है उसकी कद्र करते उतने में गुज़ारा करेंगे तो हर परिस्थिति में सुख नज़र आएगा। मोहाँध होते देखा-देखी में अपने सुखों का अपमान नहीं करते।
ताउम्र कितना कुछ पा लें हम पर संतुष्टि की ड़कार शायद ही कोई ले पाता होगा।
इंसान मन कि फ़ितरत है, दूसरे की थाली का लड्डू हंमेशा बड़ा देखने की। सुख और खुशी का मापदंड आजकज दूसरों की जीवनशैली की उपरी परतों को देखकर तय करते है लोग। किसीकी सफ़लता हमारा नुकसान नहीं, प्रेरणा होनी चाहिए। इर्ष्या नहीं प्रयास करना चाहिए वही सुख वही सफ़लता पाने की। या तो जिसकी चाह है उसे पाने की जी जान से मेहनत कीजिए, नामुमकिन कुछ भी नहीं आप भी वो सारी सुख-सुविधा पा सकते है। या तो जो किस्मत से मिला है उसे अपना लीजिये।
बाकी किसको क्या मिला, किसने क्या पाया मेरी लकीरों में ये क्यूँ नहीं ये सोचकर किसी और के साथ अपने सुख और सफ़लता की तुलना जीवन में अभाव पैदा करती है, और ये अभाव और स्वभाव ही सारे दु:ख का कारण है। दूसरों की उपरी चमक से आकर्षित होते हमें जो मिला है उसकी खुशी भी हम खो देते है। तो जो अपनी किस्मत और मेहनत से हासिल हुआ है वही सुख देता है, उसी में खुश रहना चाहिए।
— भावना ठाकर ‘भावु’

*भावना ठाकर

बेंगलोर