हास्य व्यंग्य

व्यंग्य- चुनावी कार्यालय

निकाय चुनाव के पहले चरण वोटिंग के बाद एक सुनसान चुनावी कार्यालय पर नजर गया, जहां चुनाव से पहले देशी घी के पूड़ी और सब्जी की महक से मदहोश माहौल हुआ करता था। पार्टी के कार्यकर्ता नेताजी को हर वार्ड का माहौल बताते, ‘भैया आप जीत चुके बस चुनाव की औपचारिकता बाकी है।
नेताजी खुशी के मारे उछल जाने की एक्टिंग करते। नेताजी को एक्टिंग करना मजबूरी है, वर्ना वो घाट-घाट के पानी पी चुके और नेतागिरी भी इन चमचों के जैसे सीखा हैं।
तभी बड़े दिग्गज के बीच में पार्टी से टिकट झटक लिया। कब बड़े लोगों की खिदमत करना वो इनको अच्छे तरीकें से मालूम हैं। ये तो चुनाव फिर क्या काम के वक्त गधे को बाप बनाना पड़ जाता हैं। चमचे बैठे ताक में रहते कि कब नेता जी जेब में हाथ डाले।
एक बार जीत मिल जाये, तभी कोई दुखियारी वोटर आता तो नेताजी स्वयं अपने हाथ से पानी पिलाते और समस्या का क्या बस जेब से बंडल निकाल के धीरे से सामने वाले के जेब में खिसका देते। चमचे ताक में रहते नेताजी के जेब से निकला पैसा वापस ना जाने पाये।
शाम होते कार्यालय का माहौल में मादक माहौल ढल जाता, कई दिग्गज खिलाड़ी जुट जाते जीत का फार्मुला बताते,  राजनीतिक समीक्षकों की बात निराली वो हर चप्पे-चप्पे की आँखों देखी खबर सुनाते, नेताजी इस पर गहरा विचार विमर्श करते। कोई कहता आप उस वार्ड से आगे चल रहे थे मगर अब थोड़ा पीछे आ गये हो। तो फिर” नेताजी आप के शराब अभी तक उधर नहीं पहुँच सका हैं।
नेताजी फोन निकालते अपने किसी खास जिम्मेदार कार्यकर्ता को 50 गाली देते हुये डांट पिलाते और बोलते याद रखना प्रचार चुनाव आयोग के नजरों से बचते हुये होना चाहिये। चुनाव सम्पन्न होने के बाद शहर में शांति का माहौल हैं।
अभिषेक राज शर्मा

अभिषेक राज शर्मा

कवि अभिषेक राज शर्मा जौनपुर (उप्र०) मो. 8115130965 ईमेल as223107@gmail.com indabhi22@gmail.com