कविता

खामोशी

सुख को पीछे छोड़
दुख में चलता जा रहा हूं
पहुंचना कहीं नहीं
खोता जा रहा हूं सब
मिलता कुछ नहीं
दुख वो नहीं होता
जिस पर हम रो सकें
दुख तो वो होता है
जिस पर हमारी आत्मा
चित्कार करती है
और हम ख़ामोश रहते हैं
ख़ामोश रहकर
सब्र करते हैं
और सब्र…!
दूर से आती हुई
एक खामोशी है
जिसके लिहाफ में
इच्छाओं के असंख्य तारे
टूट कर बिखर रहे हैं
— मनोज शाह मानस 

मनोज शाह 'मानस'

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