मुक्तक/दोहा

अर्थ का अर्थ

अर्थ के भी अर्थ का, अर्थ समझना चाहिए,
अच्छे और बुरे का, फ़र्क़ समझना चाहिए।
मुफ़्त के अर्थ से, निकृष्ट बनते सबको देखा,
मेहनत से कमाया, महत्व समझना चाहिए।
अर्थ के पीछे गये तो, जीवन व्यर्थ हो जायेगा,
धर्म की दृष्टि से देखो, अर्थ समर्थ हो जायेगा।
रिश्ते नाते बनते टूटते, अर्थ जब आधार होता,
अर्थ का न सार समझा, सब अनर्थ हो जायेगा।
व्यर्थ की बातों में आकर, रात दिन लड़ते रहे,
बिना जाने धर्म का अर्थ, आपस में लड़ते रहे।
थे समर्थ हम भारतीय, संस्कार संस्कृति समृद्ध थे,
काम क्रोध मद लोभ हित, मन से ही लड़ते रहे।
कुरुक्षेत्र में कृष्ण, कर्म का अर्थ बता रहे,
सब मरे हुए खड़े, अर्जुन को समझा रहे।
विराट रूप धारण कर, ब्रह्म हूँ बता दिया,
बिन कर्म सब व्यर्थ, स्वर्ग अनर्थ बता दिया।
— डॉ अनन्त कीर्ति वर्द्धन