मुक्तक/दोहा

रिश्ते

परिवार में रिश्ते निभाना, बस ठेका हमारा है,
दुःख- सुख में खड़े रहना, बस ठेका हमारा है।
व्यस्त खुद को बताते, ज़रूरत जब भी होती है,
हम ही नाकारा लगें सबको, बस ठेका हमारा है।
सभी का मान करते हम, छोटा या बड़ा कोई,
सभी के काम करते हम, बैठा या खड़ा कोई।
हो अवसर ख़ुशियों का, या तारीफ़ें करें कोई,
मिलेगा आम हमको भी, अगर बाक़ी सड़ा कोई।
रहे कितना विनम्र कोई, यह सोचना होगा,
स्वाभिमान रहे ज़िन्दा, यह सोचना होगा।
न समझे कोई हमको, बताशे के माफ़िक़,
करेले से कड़वे भी हैं, यह सोचना होगा।
— डॉ अनन्त कीर्ति वर्द्धन