कविता

रूठ गई धरती

ताल तलैया सूख गये सारे
क्यूं रूठ गई है धरती हमारे
क्या हो रहा है ओ   भगवान
रक्षा करो अब हे कृपा निधान

नदियों में अब नीर नहीं बहती
पर्वत से झरना ना अब झरती
क्या हो रहा है ओ     भगवान
रक्षा करो अब हे कृपा  निधान

फैशन का कैसा युग है।  आया
तन पे कपड़ा छोटा हो   पाया
क्या हो रहा है ओ  भगवान
रक्षा करो अब हे कृपा निधान

मात पिता की अहमियत भूला
बड़े बुजुर्ग की शामत का झूला
क्या हो रहा है ओ भगवान
रक्षा करो अब है कृपा निधान

गुरू शिष्य की रिश्ता है अमृत
कर रहा चालबाज इसे कलंकित
क्या हो रहा है ओ  भगवान
रक्षा करो अब हे कृपा निधान

धर्म की बात  पर चल रहा मंथन
अधर्म की दरिया में डूबा तन मन
क्या हो रहा है ओ   भगवान
रक्षा करो  अब हे  कृपा  निधान

बहन बेटियॉ की अस्मत क्यूं लुटती
शाषण प्रशाषण क्यूं नहीं    जगती
क्या हो रहा है  ओ          भगवान
रक्षा करो अब हे      कृपा निधान

वृद्धा आश्रम माता पिता है पलता
नालायक बेटा क्यूं ना     समझताI
क्या हो रहा है ओ     भगवान
रक्षा करो अब    हे   कृपा निधान

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088