कविता

दर्द का रिश्ता

दर्द का कोई रिश्ता नहीं होता
रिश्ता जब दर्द देने लगता है
तब वो रिश्ता दर्द का बन जाता है।
जीवन का कड़वा सच
जब हमारे सामने आता है
तब दर्द उभर ही आता है,
कल तक का सबसे करीबी रिश्ता
नासूर बन टीसने लगता है।
भरोसे का जब कत्ल होता है
तब तड़प कर रह जाना पड़ता है
रिश्तों से मन उचट जाता है
हर अपना ही दर्द का सूत्रधार नजर आता है।
रिश्तों से विश्वास उठता जाता है
हर रिश्ते में दर्द का रिश्ता
साफ नजर आता है,
और हमें मुंह चिढ़ाता
हमें आइना दिखाता है
क्योंकि रिश्ता ही दर्द बन जाता है।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921