गीतिका/ग़ज़ल

मंज़िल को पाना है

हो डगर  कंटक भरी ,मुझे मंज़िल  को पाना है।
झंझावात बेशक खड़े,अविरल कदम बढ़ाना है।
हौसले बुलंद अगर ,हो जाती डगर आसान‌ है,
दृढ़ निश्चय से मुझे ,उम्मीदों का दीप जलाना है।
कैद मुट्ठी में करूॅंगा व्योम की वृहत तारावली,
जोश कितना है बाजू में यह आज आज़माना है।
सरिता सा बहना सीखना मुख मोड़ना है नहीं,
तोड़ अवरोध सारे सदा जलधि में जा समाना है।
अनिल बहे है बेग से तरु भी रुंड मुंड कर दिये,
सोया जो बल भीतर है मेरे अनिल सा जगाना है।
लक्ष्य साध के नयन से आंख बींध ले आऊॅंगा,
हों विजय अर्जुन‌ सा मुझे है शौर्य कर दिखाना है।
फ़ौलादी सीना‌ ले चलूॅं टकरा जाऊॅं पाषाण से,
पथ अवरोधक जो बना , हर बला से टकराना है।
आशीष है बुजुर्गों का मेरे सिर पर सदा ही बना,
कर्तव्य से विमुख नहीं होना‌ हर वचन निभाना है।
निरुत्साहित हो चुके जो निराशा के मंझधार में,
सफलता का  राज क्या है, यह उन्हें  बतलाना है।
— शिव सन्याल

शिव सन्याल

नाम :- शिव सन्याल (शिव राज सन्याल) जन्म तिथि:- 2/4/1956 माता का नाम :-श्रीमती वीरो देवी पिता का नाम:- श्री राम पाल सन्याल स्थान:- राम निवास मकड़ाहन डा.मकड़ाहन तह.ज्वाली जिला कांगड़ा (हि.प्र) 176023 शिक्षा:- इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लोक निर्माण विभाग में सेवाएं दे कर सहायक अभियन्ता के पद से रिटायर्ड। प्रस्तुति:- दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1) मन तरंग 2)बोल राम राम रे . 3)बज़्म-ए-हिन्द सांझा काव्य संग्रह संपादक आदरणीय निर्मेश त्यागी जी प्रकाशक वर्तमान अंकुर बी-92 सेक्टर-6-नोएडा।हिन्दी और पहाड़ी में अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। Email:. [email protected] M.no. 9418063995