हो डगर कंटक भरी ,मुझे मंज़िल को पाना है।
झंझावात बेशक खड़े,अविरल कदम बढ़ाना है।
हौसले बुलंद अगर ,हो जाती डगर आसान है,
दृढ़ निश्चय से मुझे ,उम्मीदों का दीप जलाना है।
कैद मुट्ठी में करूॅंगा व्योम की वृहत तारावली,
जोश कितना है बाजू में यह आज आज़माना है।
सरिता सा बहना सीखना मुख मोड़ना है नहीं,
तोड़ अवरोध सारे सदा जलधि में जा समाना है।
अनिल बहे है बेग से तरु भी रुंड मुंड कर दिये,
सोया जो बल भीतर है मेरे अनिल सा जगाना है।
लक्ष्य साध के नयन से आंख बींध ले आऊॅंगा,
हों विजय अर्जुन सा मुझे है शौर्य कर दिखाना है।
फ़ौलादी सीना ले चलूॅं टकरा जाऊॅं पाषाण से,
पथ अवरोधक जो बना , हर बला से टकराना है।
आशीष है बुजुर्गों का मेरे सिर पर सदा ही बना,
कर्तव्य से विमुख नहीं होना हर वचन निभाना है।
निरुत्साहित हो चुके जो निराशा के मंझधार में,
सफलता का राज क्या है, यह उन्हें बतलाना है।
— शिव सन्याल