बाल कविता

छुटकू खरगोश

छुटकू खरगोश

छुटकू खरगोश कितना प्यारा,

मृदुल रुई सा, सफेदी का चमकारा,
बादल सा हल्का फुल्का, फुर्तीला,
मेरा साथी, प्रिय मित्र हमारा।।
चटकारे लेकर मूली, गाजर खाये,
हरेभरे, दाने मटर के खूब भाये,
पकड़म पकड़ाई हम संग खेले,
लाल लाल आँखे, खूब सुहाये।।
मासूम नटखट हैं छुटकू न्यारा,
हम सबकी आँखों का तारा,
गोदी में लेकर मैं खूब घुमाता,
सबको लागे बहुत ही प्यारा।।
छुटकू हमारे परिवार का हिस्सा,
खटपट खटपट, नित नवल किस्सा,
कभी छुपकर वह मुझे सताता,
देख ना उसको होता मैं रुआंसा।।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८