धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

प्रकाश पुंज का पर्व-गुरु पूर्णिमा

“गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपने ,गोविंद दियो बताए”
आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में देश में मनाया जाता रहा है। इसी दिन भगवान वेदव्यास का जन्म हुआ। भगवान वेद व्यास ने ज्ञान के प्रकाश को चारों दिशाओं में प्रकाशित किया, उन्होंने ज्ञान के द्वारा गुरु और शिष्य के संबंधों की आधारशिला रखी। सृष्टि के  प्रारंभ से ही भारतीय संस्कृति में गुरु की महिमा अपरंपार है।
गुरु के सानिध्य से शिष्य के जीवन की दिशा और दशा दोनों में परिवर्तन हो जाता है। गुरु की कृपा और शिष्य का समर्पण दोनों सम्मिलित रूप से शिष्य के जीवन का संपूर्ण अस्तित्व बदल देते हैं। शिष्य के जीवन में पग- पग पर अनेक कठिनाइयां उत्पन्न होती हैं। उसे अपनी जीवन रूपी यात्रा में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है इस यात्रा में कभी-कभी वह भटक कर गलत दिशा में मुड़ जाता है। उस समय शिष्य को एक मार्गदर्शक अर्थात सद्गुरु की आवश्यकता होती है। जो उसे सही मार्ग दिखलाए। सद्गुरु शिष्य को अज्ञान से ज्ञानके प्रकाश की ओर लेकर जाता है और उसमें ज्ञान, भक्ति, प्रेम, समर्पण रूपी बीज को उत्पन्न करने की क्षमता को साकार रूप प्रदान करता है। शिष्य में स्वार्थ और अहंकार का भाव उत्पन्न हो ही नहीं इसके लिए सद्गुरु शिष्य को आध्यात्मिक प्रेम करना सिखाता है। गुरु सदैव बालक को भगवान  के साकार रूप व  निराकार दोनों का प्रतिनिधित्व कराते हैं। सिक्खों के महान गुरु नानक ने भी अपने मंदिरों को गुरुद्वारा कहा। गुरुद्वारा अर्थात गुरु का द्वार है उस द्बार में तो जाना है,परंतु यदि तुम द्वार से भी गुजरने को तैयार नहीं हो,तो तुम परमात्मा रूपी मंदिर में कैसे पहुंचोगे। गुरु सदैव यही शिक्षा देते हैं कि ईश्वर रूपी द्वार से गुजरने के लिए तुम्हें झुकना ही पड़ेगा और झुक कर जाना ही होगा। आज युग निर्माण में एक सेनापति की भांति गुरु की भूमिका रहती है, जिस प्रकार सेनापति रण भूमि में सेना की बागडोर अपने हाथ में लेकर कुशलता पूर्वक संचालन करते हैं उसी प्रकार शिष्य को संसार रूपी युद्ध भूमि में सही गलत का आभास कराते हुए प्रत्येक कार्य को संचालित करना आवश्यक है।  गुरु को शिष्य से सदैव ऐसे ही अपेक्षाएं रहती है जिससे शिष्य गुरु का मार्गदर्शन प्राप्त कर संसार को अपने कार्यों के द्वारा दिशा निर्देशित करने का प्रयत्न करें, इसके लिए शिष्य निरन्तर सद्गुरु के पद चिन्हों पर चले। एक सच्चे पथ-प्रदर्शक शिष्य को जागृत करने का कार्य इस पर्व पर आरंभ करें तभी गुरु पूर्णिमा पर्व वास्तविक रूप में सार्थक होगा।
— डॉ. पूर्णिमा अग्रवाल

डॉ. पूर्णिमा अग्रवाल

मैं अम्बाह पीजी कॉलेज में हिंदी की सहायक प्राध्यापिका के रूप मैं पदस्थ हूँ। मेरा निवास स्थान सदर बाजार गंज अम्बाह, मुरैना (म.प्र.) है।