क्षणिका

मौन

हाथों में  लिए मोबाइल

मौन हुए बैठे हैं

न तुम कुछ बोलो

न हम कुछ बोलें 

सारे जहां से करते हम बातें 

पर मुँह से निकले न कोई बोल

ऑंखें गड़ी मोबाइल पर 

कैसा इक सन्नाटा सा पसरा हुआ है

लगता है कोई आबाद नहीं घर में

हर और यही नज़ारा है

जाती जिधर भी नज़र 

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020