धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

प्रकृति के महिमागान का महापर्व – हरियाली अमावस्या

वर्षा से नहायी और हरियाली की चादर ओढ़े सजी-सँवरी प्रकृति के सौन्दर्य को निहारने के लिए प्रकृति प्रेम से परिपूर्ण और आनन्दाभिव्यक्ति का वार्षिक पर्व हरियाली अमावस हर किसी के तन-मन को हरा, भाव भरा कर देने के लिए आदिकाल से प्रसिद्ध रहा है।

वाग्वर अंचल की उत्सवी परम्परा में हरियाली अमावास्या को ’दीवासा’ के रूप में मान्यता मिली हुई है। वर्षाकाल में सूर्य के दक्षिणायन होने, भगवान का शयनकाल होने आदि की वजह से मांगलिक आयोजनों पर चातुर्मास के लिए विराम लग जाता है।

पावसकालीन पर्वोका उद्घाटक

वागड़ में दीवासा को वर्षाकालीन लोक पर्वों का उद्घाटक माना जाता है। इस दिन में पिण्ड से लेकर परिवेश तक में परिवर्तन की लहरों का नर्तन आरंभ होने लगता है। लोक में आलोक पसराने वाला यह पर्व व्यष्टिगत होने के साथ ही समष्टिगत आनन्द की वृष्टि करने वाला भी रहा है।

एक जमाना था जब 75 इंच और इससे ज्यादा बारिश वाला बांसवाड़ा ‘राजस्थान के चेरापूंजी’ के रूप में ख्यात था, जब पखवाड़े से लेकर महीन-महीने तक लगातार न्यूनाधिक बारिश की वजह से उत्तराखण्ड की वादियों जैसा रूप-सौन्दर्य झरता रहा है। तब के बीहड़ वनों, सघन जंगलों की सघन हरियाली और नैसर्गिक सौन्दर्य, नदी-नालों का माहों तक कल-कल प्रवाह और वन्य जीवों की अठखेलियों भरा माहौल आज भले न दीखे मगर हरियाली अमावस तक वागड़ वसुंधरा का सौन्दर्य रमणीय और बहुगुणित हो ही जाता है।

उल्लास अभिव्यक्ति का महापर्व

दीवासा का दिन वागड़वासियों के लिए प्रकृति गान का वह लोकोत्सव होता है जब तन-मन से लेकर परिवेश और हवाएँ तक मदमस्त हो जयगान करती हैं। उल्लास अभिव्यक्ति का प्रतीक पावन पर्व वागड़ अंचल भर में आनंद का ज्वार उमड़ाता है।

लप्सी का आनंद

इस दिन वागड़ अंचल भर में घरों में पकवान बनाए जाते हैं। ख़ासकर लप्सी की परम्परा रही है। लप्सी का व्यंजन वागड़ में शुभारंभ का प्रतीक है। लप्सी में गुड़ तथा गेहूं का प्रयोग होता है जो भगवान श्री गणेश को प्रिय होता है। इसलिए शुभ कार्यों का श्रीगणेश लप्सी से होता है। वहीं यह व्यंजन पूरे वर्ष भर उत्सवी जीवन के निर्विघ्न होने का संकेत भी देता है।

यों भी बरसात और ठण्ढी हवाओं भरे इस मौसम में गरम-गरम लप्सी का आनन्द ही अलग है। इसके साथ ही मालपूओं का प्रचलन भी हाल के वर्षों में बढ़ा है। लप्सी औषधीय लाभ भी करती है व सुपाच्य भी होती है।

बुजुर्ग बताते हैं कि रियासतकाल में दीवासा पर बांसवाड़ा में राज दरबार लगता व दरीखाना भरता था और राजा से लेकर प्रजा तक सभी हरियाली अमावास्या की नैसर्गिक मद-मस्ती का आनंद लेने को उमड़ते थे।

प्रकृति के बीच – जंगल में मंगल 

हरियाली अमावास्या के दिन ज्यादा से ज्यादा लोगों की इच्छा प्रकृति की गोद में ही दिन बिताने की होती है। यही वजह है कि मनोरम नैसर्गिक सौन्दर्य को निहारने-छूने प्रकृतिप्रेमी प्राकृतिक दर्शनीय स्थलों की सैर करते हैं व पूरे परिवार एवं इष्ट मित्रों के साथ पिकनिक का मजा लेते हैं।

वागड़ अंचल में हरियाली अमावास्या के दिन नैसर्गिक रमणीयता भरे तमाम स्थलों पर लोगों का भारी जमघट लगा रहता है और हर कहीं पिकनिक का माहौल जनजीवन के उल्लास को अभिव्यक्त करता है।

कल्पवृक्ष दर्शन

बांसवाड़ा में हरियाली अमावास्या पर कल्पवृक्ष के दर्शन व परिक्रमा आदि के लिए श्रृद्वालुओं का तांता लगता है। ये कल्पवृक्ष बांसवाड़ा-रतलाम मार्ग पर शहर से बाहर बाईतालाब के समीप स्थित हैं जहां राजा-रानी नामक दो प्राचीन कल्पवृक्ष मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाले वृक्षों के रूप में पूजा जाता हैं।

हरियाली अमावस के दिन इन वृक्षों की पूजा-अर्चना की जाती है और भक्तगण मनोकामनाओं का स्मरण कर इनकी विषम संख्या में परिक्रमा करते हैं। डूंगरपुर जिला मुख्यालय पर गेपसागर की पाल पर नानाभाई पार्क व फतहगढ़ी पर दो-तीन दिन का मेला भरता है।

वनिताएं भी प्रकृति के रंग में

हरियाली अमावास्या या दीवासा वागड़ की वादियों में पर्यावरण प्रेम का मनोहारी नज़ारा दिखाता है। हरियाली अमावास्या पर वागड़ अंचल में शहरों-कस्बों और गांवों से लेकर पहाड़ी क्षेत्रों और पालों-फलों-ढाणियों तक आनंद ही आनंद  पसरता है।

प्रकृति के रंगों और रसों में नहाकर नैसर्गिक आनंद पाने के लिए हरियाली अमावास्या को महिलाएं हरे परिधानों का प्रयोग कर प्राकृतिक एवं मौलिक आनन्द की अनुभूति करती हैं।

लोक जीवन में हरियाली का आवाहन

हरियाली अमावास्या या दीवासा वागड़ की वादियों में पर्यावरण प्रेम का मनोहारी नज़ारा दिखाता है। इस बार हरियाली अमावास्या सोमवार को होने से इसका महत्त्व काफी अधिक है। एक तरफ पूर्णिमान्त पद्धतियुक्त श्रावण मास और ऊपर से सोमवती अमावास्या का महासंयोग इस बार भक्तिभाव के साथ कुछ विशेष उल्लास का दिग्दर्शन कराने वाला रहेगा।

वागड़ का दीवासा प्रकृति के रंगों और रसों से जीवन को परिपुष्ट बनाने वाला वह वार्षिक त्योहार है जो सभी भेदों से ऊपर उठकर हर किसी को ताजगी और सुकून का अहसास कराता है।

श्यामपुरा में भी  लगा था मेला

बांसवाड़ा शहर के समीप श्यामपुरा वन क्षेत्र शहर के पास सघन जंगलों और प्रकृति के रंगों से साक्षात कराने वाला पिकनिक एवं वन विहार स्थल बन चुका है। आम जन को प्रकृति के उपहारों से परिचित कराने के लिए बांसवाड़ा के वन विभाग द्वारा कुछ वर्ष पहले यहां हरियाली अमावास्या पर मेला लगाया गया था। बांसवाड़ा नगर परिषद द्वारा कागदी क्षेत्र में मेला आयोजन भी होने लगा है।

डॉ. दीपक आचार्य

*डॉ. दीपक आचार्य

M-9413306077 [email protected]