लघुकथा

लघुकथा – पुश्तैनी पेशा

आकाश अपने दफ्तर में लैपटॉप पर काम कर रहे थे। उनके कार्यालय में कुल दस इंजीनियर काम कर रहे थे।

“जी, सर, मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ।”  आकाश के सहकर्मी विकास ने कहा। 

” जी, क्या पूछना चाहते हैं,विकास जी”

“आपकी जाति मैं जान सकता हूँ?”

विकास की बात सुनकर आकाश  स्तब्ध रह गए।कुछ सेकंड बाद कहा, “मैं हिन्दू हूँ भाई, जाति सुनकर क्या करोगे। शादीशुदा भी हूँ। पिछले साल ही मैंने शादी की है।”

“आपका पुश्तैनी पेशा क्या है?”

“विकास जी, पुश्तैनी पेशा से क्या मतलब? मेरे दादाजी किसान थे। पिताजी शिक्षक थे। मैं इंजीनियर हूँ। आगे मेरे बच्चे क्या करेंगे,यह उनकी योग्यता और रुचि पर निर्भर रहेगा।”

आकाश के जवाब से विकास फिर आगे प्रश्न करने का साहस जुटा नहीं पाए।

— निर्मल कुमार दे

निर्मल कुमार डे

जमशेदपुर झारखंड nirmalkumardey07@gmail.com