लघुकथा

जय जवान – जय किसान

परमजोत की सूख चुकी पथराई आँखें कभी अपने पति परगट सिंह, तो कभी अपने इकलौते बेटे निहाल सिंह के शव की तरफ देखती और फिर वह ऊपर शून्य में देखने लगती।

शून्य में देखते हुए उसके स्मृतिपटल पर वह दृश्य घूम गया जब युवा होते निहाल सिंह ने सेना में जाने की इच्छा व्यक्त की थी। वह सिहर गई थी यह जानकर। सीमा पर आए दिन जवानों के शहादत की खबर से वह व्यथित हो जाती।

इसके विपरीत उसके पति परगट सिंह ने बेटे की इच्छा जानकर उसकी खूब सराहना की और उसका उत्साह बढ़ाया। 

निहाल सिंह सेना में सूबेदार के पद पर कश्मीर में तैनात था जब आतंकवादियों से हुए मुठभेड़ में वह कल शहीद हो गया था। 

 यह परमजोत के दुर्भाग्य की इंतेहा ही थी कि कल ही दोपहर में उसके पति भी किसानों के एक सम्मेलन से वापस आते हुए एक विवादास्पद कार दुर्घटना के शिकार हो गए थे। 

सरकार से इंसाफ की माँग करते हुए किसान नेताओं ने सरकार पर दबाव बनाने के उद्देश्य से परमजोत से परगट सिंह की अंत्येष्टि नहीं करने का निवेदन किया। 

किसान नेताओं के अनुरोध को विनम्रता से अस्वीकार करते हुए परमजोत ने कहा, “माफ कीजियेगा, मैं आप लोगों की यह बात नहीं मान सकती। हमें किसान ही रहने दो, नेता न बनाओ !”

अंत्येष्टि के वक्त परमजोत ने महसूस किया, हजारों ग्रामीणों व अफसरों की भीड़ में सनसनाती हुई हवाएँ उसपर पुष्पवृष्टि कर रही हैं और कानों में गूँज रहा है ..जय जवान – जय किसान !

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।