लघुकथा

रामलाल काका


पूरे गाँव में रामलाल काका की ही चर्चा थी। जब से उस विशाल घर परिवार के मुखिया की जिम्मेदारी उन्हें मिली थी, उन्होंने कई क्रांतिकारी फैसले लिए जिनके खिलाफ उनके पुरखे सदैव ही रहे।
साहूकार के हाथों खेत खलिहान गिरवी रखकर पुश्तों से बेरंग पड़ी हवेली के मरम्मत व रंग रोगन का कार्य जोरों से चल रहा था।
इस रंग रोगन व मरम्मत के चक्कर में कई बार घर की रसोई ठंडी रह जाती लेकिन घर के भूखे सदस्य घर के बदलते रूप को देखकर अभिभूत थे व रामलाल काका की शान में कसीदे पढ़ना नहीं भूलते।
एक दिन किसी बात को लेकर उनके दो पुत्रों में बेहद गंभीर विवाद शुरू हो गया। नौबत मारपीट तक पहुँच गई लेकिन रामलाल काका सब कुछ देखते सुनते हुए भी खामोश रहे। घर के अन्य सदस्य चाहते थे कि रामलाल काका उनके झगड़े में हस्तक्षेप करें व घर में शांति लाएँ लेकिन रामलाल काका फिर भी मौन रहे।
रंग रोगन के ठेकेदार ने रामलाल काका के सम्मान में अपने घर पर एक समारोह का आयोजन किया। नियत समय पर उसके घर जाने से पहले पड़ोसियों से उन्हें सूचना मिली कि उनके दोनों पुत्रों में बेहद हिंसक झड़प भी हो सकती है, लेकिन इस महत्वपूर्ण सूचना को दरकिनार कर रामलाल काका समारोह में शामिल होने के लिए ठेकेदार के घर रवाना हो गए।
दोनों पुत्रों में वैमनस्य की आग ऐसी बढ़ी कि उनके एक पुत्र ने अपने दबंग पुत्रों की सहायता से अपने भाई के परिजनों पर हमला कर दिया। लहूलुहान परिजनों को देखकर भी उनके प्रतिशोध की आग नहीं बुझी। उन्होंने घर की युवतियों को निर्वस्त्र कर पूरे गाँव में घुमाया।
इधर समारोह में सम्मानित किए जा रहे रामलाल काका अपनी दूरदृष्टि पर गर्वित हो भाषण दे रहे थे।
ठेकेदार के परिचितों द्वारा लगाए जा रहे जयकारे से उत्साहित रामलाल के कुछ पुत्र बेहद गर्वित महसूस कर रहे थे जबकि कुछ पुत्रों ने शर्म से अपनी आँखें बंद कर ली थी क्यूँकि उसी समय उनके घर की इज्जत बेपर्दा होकर अपना आबरू बचाने के लिए संघर्ष कर रही थी और उन्हें बेपर्दा करनेवाला कोई और नहीं, उनका अपना ही था।
रामलाल काका अब भी खामोश हैं।
— राजकुमार कांदु

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।