लघुकथा

खामोशी

दूर कहीं अंतरिक्ष से पृथ्वी की तरफ ध्यान से देख रहा दुःशासन अचानक जोरों से चीख पड़ा। बगल में ही बैठा दुर्योधन हड़बड़ाकर बोला, “क्या हुआ छोटे ? ऐसा क्या देख लिया तुमने जो इतनी जोर से चीख पड़े ?”

दुःशासन अपनी तर्जनी से एक तरफ इशारा करते हुए बोला, “वो देखो भैया ! हमारे प्यारे भारत देश में ये क्या हो रहा है ? ऐसी तो हमने भी कभी नहीं किया।”

दुर्योधन ने उसकी उँगली की सीध में देखा और हक्काबक्का रह गया। कुछ युवकों का समूह दो पूर्ण नग्न युवतियों को किसी भेंड़ की तरह हाँकते ठहाके लगाते उनपर अश्लील फब्तियाँ कस रहे थे, उसे प्रताड़ित कर रहे थे।

महाभारत युद्ध का भयानक व वीभत्स दृश्य देख चुका वह प्रत्यक्षदर्शी भी यह दृश्य देखकर द्रवित हो उठा। 

अपनी आँखें बंद कर ईश्वर का स्मरण करते हुए वह बोला, “उधर ध्यान मत दो छोटे। बस ईश्वर का स्मरण करो और उनका आभार मानो कि यह दिन देखने से पहले ही उन्होंने हमें धरती पर से अपने पास बुला लिया है।”

उद्विग्नता से दुःशासन बोला, “लेकिन धरती पर रह रहे अन्य जीवों की क्या गलती है भैया जो उन्हें ये सब देखना पड़ रहा है ?”

स्मित हास्य के साथ दुर्योधन बोला, “छोटे ! अन्याय व अधर्म के खिलाफ लोगों का खामोश रहना ही उनकी गलती है। आज जो हो रहा है…वह तो होना ही था।”

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।