गीतिका/ग़ज़ल

सपने 

नींद में आते हैं सपने 

ठहर न पाते हैं सपने 

कुछ अच्छे दें प्रसन्नता 

बुरे डराते हैं सपने 

अनजानी – सी जगहों की

सैर कराते हैं सपने 

जब खुल जाती हैं पलकें 

बहुत सताते हैं सपने 

मन की दबी भावनाएँ 

बाहर लाते हैं सपने 

ओस की एक बूँद जैसे 

कोमल नाते हैं सपने 

झलक दिखाकर स्मृति की 

बस खो जाते हैं सपने 

मानव क्या, पशु – पक्षी भी

नित्य सजाते हैं सपने 

ग्रहण सार-संदेश करें

मार्ग बताते हैं सपने 

जो न कभी सोने देते 

वे ही मुस्काते सपने 

— गौरीशंकर वैश्य विनम्र

गौरीशंकर वैश्य विनम्र

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