ग़ज़ल
घूम कर ख़ूब दर बदर देखा।
पर नबी सा नहीं बशर देखा।
उसका जादू जो बेअसर देखा।
फिरनमुड़कर कभीउधर देखा।
चाँद पर कल उतर गया रोवर,
देश ने ज्ञान का शिखर देखा।
उसकी बातों को मान लूँ कैसे,
जिसका ईमां डगर मगर देखा।
देखता रह गया फ़क़त खामी,
ख़ार देखा नहीं समर देखा।
— हमीद कानपुरी