कहानी

तीन एकड़ जमीन

संजू कोईरी के पिता हीरा महतो (कोईरी) के पास साढ़े तीन एकड़ जमीन थी। तीन एकड़ जमीन में बरसात के समय खेत पानी से लबालब भर जाता है। जहाँ धान की खेती के अलावा कुछ नहीं होता है। जब खेत में पानी सूख जाता है। तब सिंचाई के लिए कई स्थायी प्रबंध नहीं। बाकी पचास डिसमिल जमीन में बारह महीने तरह-तरह की सब्जियाँ उगाता है।
संजू दो वर्ष का था। धान की खेती के लिए खेतों की जोताई का समय आया। और हीरा बीमार हो गया। छः महीने तक खाट से उठने भी नहीं सका। पत्नी छः महीने तक पति का सेवा-सुश्रूषा करती रही। घर के सामने वाली पचास डिसमिल जमीन पर ईमानदार मजदूर घासीराम के सहयोग से सब्जियाँ उगा कर गाँव में बाजार से कम दाम में बिका करती है। पत्नी किसी तरह दो वक्त की रोटी जुटा रही। हीरा छः महीने के बाद डंडा पकड़कर धीरे-धीरे खेत जाने लगा। खेत में लगी फसल का घास उखाड़ देता। पत्नी टोकरी में भर कर बाहर निकाल फेंकती।
हीरा ठीक हो गया। अब सोचने लगा कि पिछले साल बीमार हो जाने के कारण धान की खेती नहीं हो पायी थी। घर में धान का भी बीज नहीं है। बीज की चिंता सता रही। पत्नी हाथ में पुराना चूका लेकर आती है। तभी हीरा कहता है, ”ये क्या है? संजू की माँ!“
”चूका!“
”हाँ! ये तो मैं भी देख रहा हूँ कि तुम्हारे हाथ में चूका है। लेकिन इसमें है क्या?“
”पैसा!“
”पैसा! कहाँ से लाई हो? कहीं किसी के घर से चुराकर तो नहीं लाई।“
”हाय राम! ये आप क्या कह रहे हैं? संजू के पापा! मैं, इस चूका में पाँच साल से एक-दो रुपये करके रखी थी, जो आज धान का बीज खरीदने के लिए निकाल लाई हूँ।“
हीरा घासीराम के साथ खेत में चार-पाँच बैल गाड़ी गोबर गिरा लिया। खेत में बीज खरीदकर गिरा दिया। अब एक-दो खेत में पानी भरने लगा। हीरा जल्द खेत को तैयार कर धान रोप देने के फिराक में है। सुबह चार बजे उठकर बैल को घास खिलाता और बैल को लेकर खेत की जोताई करने चला जाता है। दो-तीन दिन के बाद अचानक हीरा का पूरा शरीर गुब्बारे की तरह फुल गया। पत्नी वैद्य को बुलाती हैं। वैद्य पाँच दिन की दवा देकर चला गया। वैद्य की दवा में एक आना भी काम नहीं किया। वह डॉक्टर को बुला लाई। डॉक्टर साहब कुछ दवाइयाँ लिखे और दो इंजेक्शन भी दिये। सप्ताह भर गुजर गया। पर हीरा जस-का-तस खाट में पड़ा रहा। पत्नी यहाँ-वहाँ से वैद्य और डॉक्टर बुला रही। गुनी-ओझा को बुलाकर झांड़-फंूक कराती रही।
सुधीर महतो (कुरमी) के चार पुत्र हैं। सभी पुत्रों की शादी कर दी है। सुधीर के पिताजी की दो एकड़ जमीन है। जिसमें सुधीर के लिए काफी था। पर अब कम पड़ने लगा है। सुधीर का खेत हीरा के तीन एकड़ खेत के सामने ही है। सुधीर एक दिन बीमार हीरा के पास चला आया और कहता है, ”दादा, तुम्हारा खेत पिछले साल भी खाली पड़ा रहा। इस वर्ष भी तुम बीमार हो। दादा, ऐसे भी मेरा खेत कम है। और मेरे चारों बेटा मजूरी करने जाते हैं। यदि तुम्हारा खेत मुझे आधा हिस्सा में करने देते तो मेरा भी भला होता और तुम्हारा भी। ऐसे भी आधा खेत की जोताई तुम कर ही लिया है। केवल तुम रोपाई के समय की खाद खरीद देना, बाकि मैं कर लूँगा।“
”भाई, मेरे पास खाद खरीदने का पैसा नहीं है। तुम ईमानदारी से तीन हिस्सा में एक हिस्सा ही दे देना। बाकि दो हिस्सा रख लेना।“
”दादा, मैं भाभी को बुलाकर खलिहान से ही आपके हिस्से का धान बोरा में डाल कर पहुँचा दूँगा।“
हीरा पर कोई भी दवा काम नहीं करने लगी। पत्नी के पास बाहर ले जाकर इलाज कराने का सामर्थ्य भी नहीं। धान की फसल भी तैयार नहीं हुई। और हीरा नेे प्राण त्याग दिया।
संजू लगभग तीन वर्ष का बालक है। माँ के आँचल में लिपटकर रोने के अलावा कुछ नहीं जानता है। संजू की माँ घर के सामने वाली पचास डिसमिल जमीन पर सब्जी लगाती। अब पिता का ईमानदार मजदूर घासीराम को दूसरी जगह एक सौ तीस रुपये देते। पर संजू के घर में सौ रुपये में ही काम करता। घासीराम की पत्नी जब गर्भ में थी। उस समय घासीराम के पास मात्र सौ रुपया था। और पत्नी की हालत गंभीर थी। घासीराम हॉस्पिटल ले जाना चाहता। पर पैसा नहीं, इसलिए सिर में हाथ लिए रो रहा। हीरा पहुँच जाता है। घासीराम की पत्नी की हालत देख, घासीराम को तैयार होने को कहा और दौड़ता हुआ बैल गाड़ी लेने घर चला आया। बैल गाड़ी से सरकारी स्वस्थ केंद्र ले गया। दवा-दारू का सारा खर्च उठाया था।
इस बार धान की फसल अच्छी हुई। सुधीर का खलिहान भर गया। सुधीर ने संजू की माँ को अपने हिस्से का धान पहुँचा दिया, न लेने को बुलाया। एक दिन संजू की माँ स्वयं धान लेने के लिए सुधीर का खलिहान चली जाती हैं। खलिहान में सुधीर मौजूद नहीं। उनके पुत्र धान को टोकरी और बोरा में भर-भर कर घर के अंदर ले जा रहे हैं। संजू की माँ से कोई न बात की और न ही बैठने को कहा। एक घंटा तक चुपचाप खड़ी होकर निहारती रही। अचानक देखती कि सुधीर बैल लेकर आ रहा है। संजू की माँ सुधीर से अपने हिस्से का धान मांगती हैं। सुधीर चिल्लाता है, ”किस चीज का हिस्सा लेने आई हो रंडी! तुम क्या? मेरे पिता की दूसरी पत्नी हो, जो आज धान का हिस्सा लेने आ गई हो।“
जरों से हँसते हुए फिर कहता है, ”यदि तुम संजू को जीवित देखना चाहती हो तो फिर यह भूल जाना कि मेरे पति का कभी तीन एकड़ का खेत भी था।“ संजू की माँ बिना कुछ कहे रोती हुई, घर चली आई।
संजू की माँ सुबह एक बार खाना खा लेती। फिर एक ही बार शाम को खाती। कभी-कभी रात को पेचकी का मुड़ उबालकर खा लेती। किसी दिन पानी पीकर ही सो जाती। संजू को सुबह का ही थोड़ा-सा खाना रख देती। किसी के घर मजदूरी करने नहीं जाती। वह अपने ही खेत में सब्जी लगाती। सब्जी को टोकरी में भर कर सुबह-सुबह घर-घर ले जाकर बेचती। किसी तरह संजू का लालन-पालन करती है।
संजू बड़ा हो गया। अब घासीराम काम करने नहीं आता। फिर भी कोई दिक्कत नहीं होती है। संजू माँ के साथ खेती करने लगा। माँ को खाना बनाने में परेशानी को देखते हुए संजू शादी कर ली।
पत्नी सुबह होते, खाना बना कर संजू के साथ ही खेत चली जाती। दोनों मिलकर खेती करते। एक साल के अंदर पत्नी एक बालक को जन्म देती हैं। बालक का नाम गोविन्द कोईरी रखा। गोविन्द को दादी संभालती। पति-पत्नी खेत पर काम करने जाते। अब पिता की पचास डिसमिल जमीन कम पड़ने लगी। हर वर्ष ठीका पर खेत लेकर धान और सब्जी की खेती करने लगे। जिसमें साल भर खाने का हो जाता है। मुनाफा नहीं होता है। मजदूरी करने वाला इससे ज्यादा पैसा कमा लेता। फिर भी संजू कभी खेती से मँुह नहीं मुड़ा। संजू अपने किसान भाइयों से कहता है, ”दादा! जो आनंद खेती करने में है, वह मजूरी में कहाँ?“
गोविन्द का चार साल हो गया। पत्नी ओर एक बालक को जन्म देती हैं। बच्चा मोटा और सुन्दर। बालक का नाम भीम रखा। जब पत्नी कुछ दिनों तक खेत काम करने नहीं जाने सकी। तब चार साल का गोविन्द पिता के साथ खेत चला जाता है। वह सिंचाई करने में पिता की मदद करता है।
गोविन्द का दस वर्ष होते ही पिता के सभी कामों में मदद करने लगा। अब पहले से अधिक खेतों को ठीका पर लेकर धान और सब्जियों की खेती करते। एक-दो वर्ष तो अच्छी फसल होती। लेकिन जिस वर्ष वर्षा कम होती। धान की खेती में खेत मालिक को पैसा देना भी अत्यंत कठिन होता। एक वर्ष नहीं के बराबर बारिश होती है। गाँव में केवल दो-चार किसान के एक-दो खेतों में धान की फसल हुई। संजू का एक खेत में धान की फसल होती है। वह ठीका खेत है। उसका मालिक बाँका सिंह मुण्डा है। मुण्डा अपने मुण्डा भाइयों के साथ दिन में ही अस्त्र-शस्त्र लेकर खेत में तैयार धान को काटने चले जाते हैं। पूरा खेत का धान को काटकर चले आते हैं। विवश पिता-पुत्र दूर से चुपचाप देखते ही रहें। संजू को डर है कि कहीं विरोध करने पर बाकी चार साल का पैसा भी पानी में डूब जायेगा। उनका विरोध करने का अर्थ है, अपने पेट में भविष्य के लिए लात मारना।
गाँव में सबसे अधिक खेत उन्ही लोगों के पास है। गाँव के राजा साहब भी उन्हीं के समाज के हैं। कोई किसान यदि एक एकड़ खेत सात साल के लिए ठीका पर लेता है तो उसके लिए एक साथ दस हजार रुपये देना पड़ता है। वे अपनी आवश्यतानुसार हर साल पैसा मांगते हैं। और नहीं देने पर वह खेत दूसरे किसान से, पैसा लेकर पुनः सात साल के लिए दे देते हैं। सात साल के हिसाब से दो साल का छोड़कर बाकी पैसा मांगने पर मारने-पीटने पर उतारू हो जाते हैं। एक-दो बरस के बाद खेत दूसरे किसान से, तीसरे किसान से पैसा लेकर दे देते हैं। तीसरे से चौथे, इसी तरह ये धमकी के साथ खेत की कमी का मौका उठाते हैं। ठीका पर खेत लेने पर मजबूर किसान के साथ अन्याय करते हैं।
संजू का छोटा पुत्र भीम पढ़ाई में तेज है। भीम को पढ़ाई के लिए बाहर भेज दिया। मैट्रिक का इम्तहान देकर घर आया। वह अपना दोस्त रामू का घर चला गया। रामू के दादाजी और भीम के दादाजी भी दोनों दोस्त थे। रामू के दादाजी भीम को अपने दादाजी के बारे बता ही रहे हैं कि अचानक रूक जाते हैं। भीम वह बात जानने की इच्छा प्रकट की। आखिर भीम के हट के सामने रामू के दादाजी को भीम के दादाजी की वह तीन एकड़ जमीन की सच्चाई बतानी पड़ी। जो सुधीर ने कब्जा कर रखा है। भीम उठकर घर चला आता है। इस बात का सत्य जानना चाहा। दादी माँ पहले सीधे इंकार कर दी। फिर भीम की जिद के सामने दादी माँ को बताने पर मजबूर कर दिया, ”हाँ बेटा, यह सत्य है कि सुधीर ने तुम्हारे दादाजी की तीन एकड़ जमीन पर कब्जा कर रखा है। जहाँ तुम्हारे दादाजी धान की खेती करते थे।“
भीम अपने बड़े भाई और पिताजी के सामने इस विषय पर चर्चा की। दूसरे दिन सुबह उठकर सीधे रामू का घर चला गया। रामू के दादाजी से वह खेत दिखा देने का अनुरोध किया। रामू के दादाजी एक बार इंकार किया। क्योंकि खेत दिखाने का मतलब है, संकट को आमंत्रित करना। भीम जिद पकड़कर बैठ गया। रामू के दादाजी खेत दिखाने चले जाते हैं। भीम खेत देखने के बाद सीधे घर चला आया। वह दादाजी का पुराना बक्सा निकाला। उसमें से तीन एकड़ जमीन का खतियान खोज निकाला। फिर खतियान का तीन सेट फोटो कॉपी कराया। शाम को तीनों बाप-बेटा, सुबह हल लेकर खेत में जाने की तैयारी करने लगे।
सुबह उठकर तीनों हल जोतने के लिए बैल को लेकर खेत चले जाते हैं। संजू खेत में दो-तीन बार हल घुमाया कि सुधीर का बड़ा लड़का मुकेश आकर हल्ला करने लगा, ”कौन है बे? हमारे खेत में हल चलाने की हिम्मत दिखाई है। काट के खेत में ही गाढ़ देंगे!“
भीम भी चिल्ला कर कह ता है, ”देख! खतियान मेरे हाथ में है। यह मेरे दादाजी की जमीन है। और खतियान उसके मुहँ में फेंक दिया।“
”अरे भांड़ में जाय! तेरे दादाजी का खतियान। मेरे पास भी मेरे दादाजी के नाम का खतियान है। खतियान के अलावे तेरे पास ओर कुछ सबूत है तो बोल! नहीं तो फिर हमारे खेत से हल-बैल लेकर तीनों फुर हो जाओ!“
”सबूत मांगता है बे! कहाँ से लायेगा खतियान?“
”ज्यादा बक-बक मेरे साथ मत करो! यहाँ से चले जाओ! मैं, फिर से कहता हूँ। नहीं तो!“
”नहीं तो! तुम क्या कर लेगा? बोल!“
”तीनों को खेत में ही मिला दूँगा!“
”आ! बेटा! आ! आज तेरी सारी गरमी एक साथ निकाल देता हूँ।“
”आ! मैं, भी देखता हूँ। तुम मेरी गरमी कैसे निकालता है?“
”आ! न! आ!“
”हिम्मत है तो एक कदम आगे बढ़ के दिखा!“
भीम दौड़ा उसके पास चला जाता है और कहता है, ”हिम्मत है तो मेरी एक अंगुली को छूकर दिखा!“
ऐसे करते दोनों के बीच हाथापाई शुरू हो जाती है। उधर सुधीर और उनके अन्य तीनों बेटा हाथ में डंडा और कुदाल लेकर पहुँच जाते हैं। भीम को कोई नहीं सकता है। उधर संजू को सुधीर का मझला लड़का पटक कर जमीन में दबा रखा है। वहीं सुधीर डंडा से सिर में वार कर देता है। संजू के सिर से खून बहने लगा है। गोविन्द भी जमीन पर गिर गया है। उनके शरीर में जगह-जगह कुदाल से वार किया। पूरा शरीर लाल दिख रहा। भीम भी मुकेश और एक-दो का हाथ-पांव तोड़ दिया। तब तक आस पास खेत में काम करने वाले और गाय-बैल को चराने वाले आकर एक-दूसरे को पकड़ लिया। भीम क्रोध से हुंकार रहा है।
कुछ ही देर में गाँव से रामू, उनके दादादी, भीम की माँ और अन्य लोग भी आ जाते हैं। भीम की माँ रोने लगी। रामू, भीम को शांत किया। भीम घायल पिताजी और भैया गोविन्द को रामू के सहयोग से अस्पताल ले गया। दोनों का इलाज करा कर रात को घर लौटा। सुबह उठकर रामू के साथ राजा साहब के पास चला गया। राजा साहब को खतियान दिखाया। और सुधीर से खेत वापस दिलाने का अनुरोध किया। तभी राजा साहब कहते हैं, ”ठीक है, भीम तुम दोपहर को देवी मंडप में अपना खतियान लेकर आ जाना।“ वहीं एक सेवक को सुधीर को बुलाने भेज दिया।
सुधीर दो-चार क्लास पढ़ा-लिखा है। बहुत चतुर है। उनकी जाति में एक-दो मास्टर हैं। उनकी मदद से सुधीर हीरा महतो (कोईरी) के मरने के बाद ही कोर्ट जाकर खतियान का नकल निकाल लिया था। जिसमें हीरा महतो (कोईरी) पिता रमेश महतो (कोईरी) था। सुधीर के दादाजी का भी नाम हीरा महतो था। और सुधीर के पिताजी का नाम रमेश महतो। सुधीर अपनी चतुराई से दादाजी हीरा महतो को पिता और पिता रमेश महतो को दादाजी कहने लगा। हीरा महतो (कोईरी) के खतियान का नकल में हीरा महतो (कोईरी) और पिता रमेश महतो (कोईरी) से कोईरी के ऊपर सफेद कागज चिपका कर फोटो कॉपी कर लिया था। सुधीर राजा साहब के पास चला गया। खतियान का फोटो कॉपी और साथ में दस हजार का बंडल भी थमा दिया। नोट का बंडल देख, राजा साहब सुधीर को दोपहर के समय देवी मंडप में आ जाने को कहा। आगे कहते हैं, ”मेरे रहते तुम! चिंता मत करना सुधीर!“
”जी हजूर!“ कहता सुधीर प्रमाण करता चला जाता है।
दोपहर को देवी मंडप में राजा साहब कुर्सी पर बैठे हैं। गाँव के कुछ गणमान्य एवं अन्य लोग भी आ गए। भीम रामू के साथ आ गया। पिताजी और भैया का जख्म बहुत गहरा था। उनका खाट से उठकर आना असंभव है। सुधीर अपने पुत्रों के साथ आ गया। राजा साहब दोनों से अपना खतियान पेश करने को कहा। भीम अपना खतियान देता है। राजा साहब सेवक को खतियान पढ़ने का आदेष देते हैं।
”जी हजूर!“ कहता सेवक भीम का खतियान पढ़ता है। जिसमें खतियान धारक का नाम हीरा महतो (कोईरी) पिता रमेश महतो (कोईरी) खाता नम्बर बयालीस, रकवा तीन एकड़। सुधीर अपना खतियान देता है। सेवक पढ़ने लगा, खतियान धारक का नाम हीरा महतो, पिता रमेश महतो कहते ही लोगों के बीच खुसुरफुसुर होने लगी। सेवक आगे पढ़ता है। खाता नम्बर बयालीस, रकवा तीन एकड़। लोगों के बीच खुसुरफुसुर तेज होने लगी। अरे! ये तो भीम के दादाजी हीरा की जमीन है। साला! सुधीर ये सब कैसे किया? और यह खतियान कहाँ से पाया?
इतने में मुकेश खड़ा होकर कहता है, ”ये क्या? शोर-शराबा मचा रहे हैं, राजा साहब!“
राजा साहब सबको चुप होने को कहते हुए कहने लगे, ”मैं विचार कर रहा हूँ न! तुम सब आराम से सुनो! दोनों की दलील सही है। लेकिन यदि भीम ही गलत कह रहा हो! क्योंकि आज इनके दादाजी भी जीवित नहीं हैं। मेरा मानना है कि जो अभी खेती करता है, वही खेती करता रहेगा।“
तभी एक वृद्ध किसी तरह खड़ा होकर कहता है, ”राजा साहब! सुधीर के पिताजी का नाम रमेश महतो है। रमेश महतो के पिताजी का नाम हीरा महतो और हीरा महतो के पिताजी का नाम करमा महतो था हजूर!“
राजा साहब ठीक से सुने भी नहीं और उठकर चले गये। भीम निराश होकर बैठा रहा। सब के चले जाने के बाद रामू कहता है, ”मित्र दुःखी मत हो!“
”दुःखी कैसे ना हो मित्रा? मेरे दादाजी की जमीन में वे ऐश कर रहे हैं और हम दूसरों का खेत ठीका लेकर खेती करते रहें।“
”उनकी संख्या बहुत अधिक है मित्र! और उनसे लड़ना अर्थात स्वयं मौत के मुँह में चले जाना है।“
निराश होकर दोनों घर चले जाते हैं। घर में बैठकर दोनों कल सुबह कोर्ट में जाकर खतियान की जाँच-पड़ताल कर लेने का निर्णय लिया। भीम रात को थोड़ा-सा खाना खाकर सो गया।
भीम सुबह उठा और स्नान करके रात का बासी भात खाकर रामू के घर की ओर निकल पड़ा। कल राजा साहब की सभा में जो वृद्ध सुधीर के खिलाफ कहा था। उसके घर से रोने की आवाज आ रही है। सड़क में जगह-जगह लोग वापस में कानाफूसी कर रहे हैं। वृद्ध बाहर में ही सोता था। यह करतूत साला! मुकेश का ही होगा। मुकेश एक मोटरसाइकिल खरीदने के लिए पत्नी को मायके से पैसा मांगने को कहा था। उनकी मायके के लोग इतने गरीब हैं कि मोटरसाइकिल खरीदने का पैसा कहाँ से देतें? शादी के समय दहेज के लिए कर्ज अदा नहीं कर पाये थे। तैयार फसल को ओले ने नष्ट कर डाला। उनके पिताजी परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने में असमर्थ और कर्ज के दबाव में पागल होकर आत्महत्या कर ली। छोटी बहन की शादी के लिए पन्द्रह बरस का भाई, छोटी बहन और माँ जी-जान देकर काम कर रहे हैं। पत्नी द्वारा मायके से पैसा मांगकर नहीं लायी। और सप्ताह भर के बाद दो कन्या को जन्म दी। मुकेश उसी रात दोनों कन्या के मुँह में नमक चाटा दिया। और पत्नी का गला दबा कर मार डाला था। वह दूसरी शादी केवल मोटरसाइकिल खरीदने के लिए किया। दूसरी शादी के लगभग सात बरस बीत गये। पत्नी तीन बार गर्भ धारण कर चुकी। किंतु एक बार भी बच्चा के जन्म की सूचना गाँव वाले को नहीं मिली। शायद तीनों बार कन्या को ही जन्म दी होगी। वह कन्या के जन्म लेते ही मार दिया हो!
भीम दौड़ता हुआ चला जाता है। सबको पूछने लगा, ”ये सब कैसे हुआ? कल तो ठीक थे। पर अचानक रात में क्या हो गया?“
कोई कुछ नहीं बताते हैं। सब सिर में हाथ लिये रो रहे। भीम वृद्ध के पास चला गया। वृद्ध के शरीर को निहारने लगा। अचानक उस वृद्ध का गला लाल नजर आयी। गला में अंगुली का निशान नजर आ रही है। भीम को भी विश्वास हो गया कि लोगों की कानाफूसी सत्य है।
भीम और रामू कोर्ट चले गये। वकील से मिलकर अपने खतियान का नकल निकाल लेता है। जिसमें साफ-साफ लिखा है। खाता धारक हीरा महतो (कोईरी)…………….। नकल को लेकर सीधे थाना चला गया। थाने के बड़ा बाबू को भी सुधीर का बड़ा लड़का पहले ही दस हजार का एक बंडल थमा रखा था। भीम बड़ा बाबू से कहता है, ”साहब, सुधीर ने मेरे दादाजी की जमीन को हड़पने के लिए पिता को दादाजी और दादाजी को पिता बना लिया है।“
बड़ा बाबू भड़क उठा, ”क्या? बक रहे हो मालूम है, तुम्हारे खिलाफ सुधीर एफआईआर दर्ज किया तो पूर्वजों में हस्तक्षेप करने के केस में चक्की पीसने अंदर चला जायेगा।“
”साहब! मेरे पास खतियान है, देखिए!“ कहता साहब के टेबल पर रख दिया।
”तुम क्या? कुछ पढ़-लिख लिया है कि दूसरे की जमीन हड़पने चला है।“
”साहब, उनके पास जो खतियान का फोटो कॉपी है। उसमें साफ-साफ दिखाई देता है कि कोईरी के ऊपर सफेद कागज चिपका कर फोटो कॉपी किया गया है।“
”तुम मुझे कानून का पाठ पढ़ायेगा साला!“ कहता गाल में दो तमाचा जोड़ दिया।
भीम अपने मित्र रामू के साथ निराश होकर घर लौट गया। भीम आँगन में सिर पर हाथ लिए खाट पर बैठा है। तभी बूढ़ी दादी आकर बोली, ”बेटा! निराश मत होना। इंसाफ भगवान करेंगे, तुम केवल मेरी एक बात याद रखना। साल में एक बार खेत की जोताई जरूर करना। साल में एक बार सरसों, राहड़, तीसी या कुछ भी बुन देना। तुम्हारी जमीन पर कभी कई कब्जा नहीं कर सकेगा।“

— डॉ. मृत्युंजय कोईरी

डॉ. मृत्युंजय कोईरी

युवा कहानीकार द्वारा, कृष्णा यादव करम टोली (अहीर टोली) पो0 - मोराबादी थाना - लालापूर राँची, झारखंड-834008 चलभाष - 07903208238 07870757972 मेल- mritunjay03021992@gmail.com