लघुकथा

यह दिन

“माँ,समीर का केम्पस सिलेक्शन हो गया है एक एम. एन.सी. में।” नीरा ने कॉलेज से आते ही मुझे खबर दी।

“समीर को बधाई देना मेरी ओर से।”मैंने कहा ।

“अब तो हमारी शादी की इज़ाजत दे दो। समीर कह रहा था, शादी के बाद ही वो कंपनी ज्वाइन करने जायेगा”।

“अभी तुम्हारी इंजीनियरिंग कम्प्लीट होने मे दो सेमेस्टर बाकी है।”

“वो मैं शादी के बाद भी कर सकती हूँ ।”

“पहिले अपनी पढ़ाई पूरी करो, जब जॉब मिल जाय ,फिर शादी के बारे मे सोचना।”

“तुम्हारी जगह कोई और माँ होती तो पहिले बेटी के विवाह के बारे मे सोचती ।”उसने गुस्से मे कहा।

 “सुनो नीरा,जब ससुराल के उलाहनो और मारपीट से तंग आकर, छह माह की बच्ची गोद में लेकर, हमेशा के लिये मैं मायके आई ,तो मेरी माँ,मुझसे सहानुभूति रखने के बजाय  रो – रो कर कह रही थी, —हमने पेट काट- काट कर पैसा बचाया, तेरे लिये दहेज जोड़ा—क्या यही दिन देखने के लिये ?”——-‘

— और,मै सोच रही थी,–“काश !माँ ने पैसा मेरे दहेज के लिये न बचाकर मेरी पढाई  मे लगाया  होता, तो आज मुझे यह दिन नहीं देखना पड़ता।”

— सुनीता मिश्रा

सुनीता मिश्रा

भोपाल sunitamishra177@gmail.com