कविता

मुसाफिर

मानव जीवन में चलता जाता है 

बचपन से बुढ़ापे का सफर करता है

जीवन भी उस नाव की तरह है

जिसमें हम मुसाफिर होते है

नाव की तरह जिंदगी में डगमग होते है

कभी खुशी होती तो कभी गम होते है

बहती नदी की धारा यह संदेश देती है

जीवन में कभी न रुके चलते जाना है

तूफानों से भी लड़कर आगे बढ़ना है

मुश्किल तो जीवन में आती है

मुसाफिर को उस पार जाना ही है

जब सब साथ छोड़ कर चले जाते है

प्रभु ही भवसागर से पार लगाते है [….]

— पूनम गुप्ता

पूनम गुप्ता

मेरी तीन कविताये बुक में प्रकाशित हो चुकी है भोपाल मध्यप्रदेश